हम क्या थे, क्या होते जा रहे हैं… ख़त्म होती मानवीय संवेदना !!!
बात कुछ दिन पहले की है। हम गाँधी मैदान से डाक बंगला के तरफ जा रहे थे तो विशाल मेगा मार्ट के पास देखे… एक बडी सी सफेद फोर-व्हीलर में बैठे हुए एक सज्जन गाडी के अन्दर से ही एक 13 से 14 साल के एक बच्चे का कॉलर पकड़ कर थप्पड़ मार रहे हैं। लोगो का हुजुम लगा हुआ है। गाड़ी को साइड में लगा के हम भी उस हुजूम का हिस्सा बनने चल दिए। बच्चा चुपचाप थप्पड़ सह रहा था। इससे सज्जन को और अधिक गुस्सा आ रहा था। अपने गुस्से को शांत करने के लिए वो अपनी गाडी से बाहर निकले, अपनी बेल्ट निकाली, और फिर बेरहमी से पीटने लगे। बच्चे के कंधे में बैग टंगी हुई थी और शायद वो साईकिल से स्कुल या टयुशन जा रहा होगा। आगे-पीछे से हुंय….हांय….पिंय….पांय..का हार्न बज रहा है क्योंकि सब को जाने की जल्दी पड़ी थी। तमाशा भी देख रहे थे लेकिन किसी को ये जानने कि जरुरत नही थी कि एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आखिर एक छोटे बच्चे को मार क्युं रहा है?
बच्चे के चेहरे से मासुमियत साफ झलक रही थी। शायद वो सीधेपन की वजह से अपनी सफाई भी नही दे पा रहा था। और वो शख्स उसे बेल्ट से मारे जा रहा है। किसी को कुछ हस्तक्षेप ना करते देखकर हमसे बर्दाश्त नही हुआ। हम जाके झटके से उस व्यक्ति की हाथों से उस बच्चे को छुड़ाए। हमें ऐसा करते देखकर और भी लोग उस व्यक्ति को भला-बुरा कहने लगे। पर वो व्यक्ति अपनी दलील देता रहा।
हमने बच्चे को हिम्मत देकर आगे भेज दिया।
उस बच्चे की गलती बस इतनी थी कि वो एक ऑटो वाले के चकमें की वजह से लडखडा गया और उसके साइकिल की हैंडील से उस सज्जन पुरुष की कार के दरवाजे की हैंडील पर मामुली खरोंच आ गयी।बस यही गलती उस बच्चे से हो गयी।
अब, इस वाक्ये की ज़िक्र कर के हम ये साबित नही करना चाहते कि हमने अगुवाई कर उस बच्चे को बचाया तो हमने कोई महान या बड़ा काम कर दिया बल्कि उस वक्त से हमारे मन में बार-बार ये सवाल ये उठ़ रहा है कि हमारी मानवीय संवेदना, दया-भाव का आखिर हो क्या गया है? क्या हम बड़ी गाड़ी, बड़ा घर, बड़ा रुतबा हासिल करके एक बड़ा दिल नही रख सकते??
आखिर हम इतने उग्र क्युं हो गये? हमें गुस्सा आता है तो हमेशा कमजोर लोगो ही पर क्यों??
हम अपने गुस्से को सही जगह इस्तेमाल क्युं नही करते ??
एक सवाल उस भीड़ से, खुद से और आप सभी से आखिर हम इतने खुदगर्ज कैसे हो सकते है? क्युं हम अन्याय होते देख मुंह मोड लेते है।
इस घटना को हुए कई दिन बीत चुके हैं लेकिन आज भी बार-बार हमें उस मासुम बच्चे का चेहरा याद आ जाता है। इस घटना से उस बच्चे के मन-मस्तिष्क पर क्या असर पड़ा होगा ये हम नही जानते। लेकिन… हमारे मन से ये घटना नही जा रही।