देवोत्थान एकादशी: चतुर्मास खत्म होते ही शुरू होंगे मांगलिक कार्य,देखें तारीखें
नारायण भगवान लगभग चार माह के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी मंगलवार 31 अक्टूबर को शयन से जागेंगे। इस दिन श्रद्धालु प्रबोधनी-देवोत्थान एकादशी व तुलसी विवाह भी मनाएंगे। इसी दिन चतुर्मास व्रत का भी समापन होगा। इसके साथ ही हिन्दू धर्मावलंबियों के शुभ मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाएंगे।
धार्मिक मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल हरिशयन एकादशी के दिन भगवान चार महीने के लिए शयन करने चले जाते और भादव शुक्ल एकादशी (करमा एकादशी) के दिन भगवान करवट लेते हैं जबकि प्रबोधनी या देवोत्थान एकादशी के दिन शयन से उठते हैं। इस दौरान श्रीहरि पाताल लोक में राजा बलि के यहां निवास करते हैं। चतुर्मास के देवता व संचालन कर्ता भगवान शिव होते हैं। चार मास के दौरान हिन्दुओं के सारे शुभ मांगलिक कार्य बंद रहे। विवाह, जनेऊ आदि नहीं संपन्न हुए।
बृहस्पति के अस्त रहने से शुभ मांगलिक कार्य में होगी देरी
ज्योतिषाचार्य पीके युग के अनुसार गुरु बृहस्पति के अस्त रहने से इस बार प्रबोधनी एकादशी के बाद भी शुभ मांगलिक विवाह आदि के कार्य शुरू होने में लगभग तीन हफ्ते की देरी होगी। बृहस्पति 13 अक्टूबर से 7 नवंबर तक अस्त रहेंगे। फिर तीन दिन और उनकी स्थिति कमजोर रहेगी। इस दौरान सूर्य की स्थिति भी ठीक नहीं रहेगी। शुक्र भी कन्या में नीच के रहेंगे। इससे देवोत्थान एकादशी के लगभग तीन हफ्ते बाद ही शुभ विवाह के मुहूर्त शुरू हो पाएंगे। विवाह आदि के शुभ मुहूर्त के लिए शुक्र और गुरु का मजबूत होना जरूरी होता है।
गुरु आदित्य योग में देवोत्थान एकादशी
आचार्य युग के मुताबिक मंगलवार देवोत्थान-प्रबोधनी एकादशी पर गुरु आदित्य और बुधादित्य योग का संयोग बनेगा। गुरु और सूर्य के साथ रहने से गुरु आदित्य और सूर्य के साथ बुध के रहने से बुधादित्य योग बनेगा। वहीं शुक्र और मंगल के साथ रहने से सुपरिजात योग जबकि गुरु व चंद्रमा के साथ होने से नौपंचम योग भी बनेगा।
नारायण को जगाने के लिए आंगन में बनेगा भगवान का घर
प्रबोधनी-देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान को पूरे विधि-विधान से भक्त जगाते हैं। दिनभर श्रद्धालु उस दिन उपवास में रहते हैं। कुछ भक्त शाम में फलाहार करते हैं तो कई निर्जला व निराहार ही 24 घंटे तक रहते हैं। ज्योतिषाचार्य डा. राजनाथ झा के अनुसार भगवान को जगाने के लिए आंगन में ईखों का घर बनाया जाता है। चार कोने पर ईख और बीच में एक लकड़ी का पीढ़ा रखा जाएगा। आंगन में भगवान के स्वागत के लिए अरिपन(अल्पना) की जाएगी। अरपिन पीसे चावल के घोल व सिंदूर से बनायी जाती है। पीढ़े पर भी अरिपन की जाएगी। शाम में इस पर शालिग्राम भगवान को रखकर उनकी पूजा की जाएगी। वेद मंत्रोच्चार के साथ भगवान को भक्त जगाएंगे। कम से कम 5 श्रद्धालु मिलकर भगवान को जगाते हैं।
प्रबोधनी एकादशी पर ग्रह-गोचरों की स्थिति:-
सूर्य,बुध,गुरु: तुला में
शनि : धनु में ,केतु: मकर में
चंद्रमा : कुंभ में ,राहू: केतु में
राहू: कर्क में ,मंगल,शुक्र: कन्या में
तुलसी विवाह का भी दिन
प्रबोधनी एकादशी ही वृंदा (तुलसी) के विवाह का दिन है। इस दिन तुलसी का भगवान विष्णु के साथ विवाह करके लग्न की शुरुआत होती है। आचार्य विपेन्द्र झा माधव के अनुसार वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु काले पड़ गए थे। उन्हें शालिग्राम के रूप में तुलसी की चरणों में रखा जाता है।
चतुर्मास पर मंगलवार का खास संयोग भी
ज्योतिषी इंजीनियर प्रशांत कुमार के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी मंगलवार को चतुर्मास शुरू हुआ और अब कार्तिक शुक्ल एकादशी मंगलवार 31 अक्टूबर को चतुर्मास समाप्त होगा। इससे चतुर्मास में मंगलवार का खास संयोग बना।
पंचांगों के अनुसार विवाह के शुभ मुहूर्त:-
नवंबर: 20,21,22,28
दिसंबर: 3,4,8,10