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आर्थिक सर्वेक्षण : बिहार के विकास की रफ्तार देश से भी तेज

 

बिहार ने विकास दर में लंबी छलांग लगाई है। वित्तीय वर्ष 2015-16 में राज्य की आर्थिक विकास दर 7.5 फीसदी थी। वित्तीय वर्ष 2016-17 में वृद्धि दर 10.3 फीसदी हो गई है। इसी अवधि में देश की विकास दर सात फीसदी रही। देश की तुलना में राज्य की विकास दर तीन फीसदी अधिक है। पिछले दशक 2004-05 से 2014-15 के बीच स्थिर मूल्य पर राज्य की आय 10.1 फीसदी की वार्षिक दर से बढ़ी है। सड़क, कृषि, ऊर्जा, डेयरी, सब्जी उत्पादन आदि के क्षेत्र में भी तरक्की हुई है।
पिछले 12 वर्षों से बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में पेश किए जा रहे आर्थिक सर्वेक्षण का क्रम जारी रखते हुए सोमवार को उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ने वित्तीय वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट पेश की।
इस बार का आर्थिक सर्वेक्षण दो खंडों में है। खंड-1 में अल्पकालिक से लेकर मध्यकालिक परिप्रेक्ष्य में बिहार की अर्थव्यवस्था की तस्वीर पेश की गयी है। वहीं, खंड-2 में सांख्यिकी परिशिष्ट के साथ राज्य सरकार की कुछ हाल की उपलब्धियां दी गयी हैं।
राज्य की विकास दर अभी 10.3 फीसदी है, जबकि पूरे देश की 7 फीसदी
विधानमंडल में पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिटोर्ट में दी गई जानकारी
वित्तमंत्री सुशील मोदी ने सदन में पेश किया आर्थिक सर्वेक्षण-2017-18

उपमुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की अर्थव्यवस्था के विकास का वाहक खनन, विनिर्माण, परिवहन, संचार व भंडारण बना हुआ है। प्रति व्यक्ति आय में सालाना 8.63 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2015-16 में बिहार में प्रति व्यक्ति आय 24 हजार 572 रुपये थी, जो बढ़ कर 2016-17 में 26 हजार 693 रुपये हो गई।
विकास पर 79 फीसदी अधिक खर्च
राज्य में विकास पर होने वाले खर्च में पिछले पांच सालों में 79 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2012-13 में विकास पर 35 हजार 817 करोड़ खर्च हुए थे, जो बढ़कर 2016-17 में 64 हजार 154 करोड़ पहुंच गया। गैर विकास कार्यों पर खर्च 23 हजार 803 करोड़ से बढ़कर 34 हजार 935 करोड़ हो गया है। यानी इसमें 47 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2016-17 में पूंजीगत परिव्यय (कैपिटल एक्सपेंडीचर) 27 हजार 208 करोड़ था। इस राशि में से 79 फीसदी यानी 21 हजार 526 करोड़ आर्थिक, 25 फीसदी यानी 5326 करोड़ सड़क, पुल व परिवहन, 27 फीसदी यानी 5739 करोड़ बिजली, आठ फीसदी सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण मद में खर्च किए गए। सामाजिक सेवाओं पर आठ फीसदी यानी 3592 करोड़ खर्च हुआ।
हिंदी भाषी राज्यों में अव्वल
श्री मोदी ने कहा कि बेहतर वित्तीय प्रबंधन के कारण बिहार रेवेन्यू सरप्लस (राजस्व अधिशेष) राज्य बन चुका है। बेहतर वित्तीय प्रबंधन के कारण हिंदी भाषी राज्यों में बिहार इस मामले में आगे है। वर्ष 2012-13 में राजस्व अधिशेष 5101 करोड़ था, जो 2016-17 में बढ़कर 10 हजार 819 करोड़ हो गया। मौजूदा वर्ष 2017-18 में 14 हजार 556 करोड़ राजस्व अधिशेष होने का अनुमान है। 2016-17 में सकल राजकोषीय घाटा 4418 करोड़ था जो 2015-16 में इसमें 883 करोड़ की वृद्धि हुई। कर्ज लेने का पैमान सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का तीन फीसदी को बिहार बखूबी पालन कर रहा है।
वर्ष 2011-16 की अवधि में राजस्व में हुई वृद्धि 
67.5 फीसदी का इजाफा हुआ खान एवं प्रस्तर खनन क्षेत्र में
25.9 फीसदी का इजाफा मैन्यूफैक्चरिंग (विनिर्माण) क्षेत्र में
13.5 फीसदी की वृद्धि परिवहन, भंडारण एवं संचार क्षेत्र में
क्षेत्रवार स्थिति
8.63 फीसदी की वृद्धि हुई प्रति व्यक्ति आय में
144 लाख टन सब्जी उत्पादित कर नंबर वन बना बिहार
13 लाख टन बढ़कर 38.6 लाख टन हुआ मक्का उत्पादन
12 लाख टन बढ़कर 60 लाख टन हुआ गेहूं का उत्पादन
100 वर्ग किमी पर 218 किमी सड़क के साथ तीसरा स्थान

बिहार में विकास की नींव वर्ष 2005-06 में रखी गई। कई वर्षों की विकास यात्रा का परिणाम है कि आज बिहार यहां पर खड़ा है। पिछले कई सालों से राजस्व सरप्लट राज्य रहा है बिहार। यह राज्य के बेहतर वित्तीय प्रबंध को दर्शाता है। विकास पर होने वाले खर्च में 2012-13 से 2016-17 तक में 79 फीसदी की वृद्धि हुई। वहीं, गैर विकास खर्च में इन पांच सालों में 47 फीसदी की वृद्धि हुई। वर्ष 1963 के बाद से 2005 तक बिहार में विकास के कार्य नहीं हुए। हमलोगों को बिल्कुल प्रारंभ से शुरुआत करनी पड़ी है।
 सुशील कुमार मोदी, वित्त मंत्री, बिहार 

 

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