पति की मौत के बाद मधुबनी पेंटिंग को बनाया सहारा, राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान
मधुबनी पेंटिंग की एक कलाकार ने अपने हिम्मत और संघर्ष की बदौलत आज जो मुकाम हासिल कर लिया है, इसकी चाहत हर कलाकार को होती है। मधुबनी के कलुआही प्रखंड के हरिपुर दक्षिणडीह टोले की उमा कुमारी झा बचपन से ही अपनी मां से मधुबनी पेंटिंग बनाना सीखा और आज यही पेंटिंग जीवन जीने का सहारा बन गया है।
उमा का विवाह एक आम लड़की की तरह ही हुआ था। पति होटल ओबेराय में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। इसलिए दाम्पत्य जीवन की शुरुआत बहुत ही सुखमय रहा। यह सुख अधिक दिनों तक नहीं रहा और एक सड़क दुर्घटना में पति की मौत हो गई।
पति को मौत के बाद उमा हिम्मत नहीं हारी और 2007 में मुंबई छोड़कर वापस अपने गांव लौट आई। नौकरी की चाहत लेकर उमा स्नातक करने लगी, लेकिन तबतक सरकारी नौकरी के लिए जरूरी उम्र ही निकल चुकी थी। बावजूद उमा हिम्मत नहीं हारी और मधुबनी पेंटिंग को अपने रोजगार का जरिया बनाने का फैसला किया।
बचपन में सीखे पेंटिंग कला को कागजों पर बारीकी से उकेरने के लिए एक निजी संस्थान से प्रशिक्षण लिया और मधुबनी पेंटिंग के रोजगार से जुड़ गई। उमा ने कहा कि वह बीस हजार तक कमा लेती है और मधुबनी पेंटिंग के ही बदौलत आज वह अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण कर पाने में सक्षम है।
उमा ने बताया कि वह कुछ और अच्छा कर सकती है, लेकिन आर्थिक कारणों से नहीं कर पा रही है। उसने बताया कि पिछले वर्ष बैंक से चार लाख रुपये के लोन के लिए अप्लाई किया था, लेकिन बैंक ने लोन देने से मना कर दिया। उमा ने सरकार से कलाकारों को सुविधा मुहैया कराए जाने की बात कही है।
उमा का संघर्ष ही था कि उसे वर्ष 2014-2015 में स्टेट अवार्ड से नवाजा गया और अब नेशनल अवार्ड के दौर में शामिल हो गई है। उमा को डीएम से मिलवाया गया। डीएम ने लोन दिलवाने का आश्वासन तो दिया ही है साथ ही बताया कि अभी इनको ऊर्जा मंत्रालय के एक कार्यक्रम में मधुबनी पेंटिंग बनाने के लिए भेजा जा रहा है।
जिस दौर में मधुबनी पेंटिंग के कलाकार पैसों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ठीक उसी समय उमा ने अपने हिम्मत के बल पर यह साबित कर दिया कि हौसला हो तो कामयाबी आपके कदम चूमेगी। उसने यह साबित कर दिया कि इस क्षेत्र में रोजगार के काफी अवसर हैं बस मेहनत करने की जरुरत है।
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