शिकायत या मोहब्बत

shikayat ya mohabbat

हर नज़रों में मैं थी ,

मेरी नज़रें किसी पे ना थी ,

आज जिसपे नज़र गई, उसकी नज़र कही और थी|

 

एक अजीब सा एहसास दिल के दहलीज पे खड़ा था,

धड़कने किसी के याद में रफ़्तार बदल रही थी ,

रोमांच भरा था अंग – अंग में,

भावनाओं की जटिल उधेरबुन सी थी ,

एक नए दौड़ से मैं गुजर रही थी ,

शायद प्रेम रोग से मैं पिरित थी |

 

कई रंग थे मेरे प्यार में ,

कुछ अलग सा था मेरा प्यार ,

चाँद तारों की न थी बातें ,

बौधिक ज्ञान का था बहार ,

रूठने मनाने में रजनी भी सो गई थी ,

फिर भी सुबह के पहर तक भी छाया था इश्क का खुमार|

 

दो पल की थी हमारी ख़ुशी ,

दो पल का था हमारा साथ ,

दुनिया की नज़र लगी ऐसी ,

न ख़ुशी रही न ही तेरा साथ |

 

मुझे फिक्र हैं तेरी खुदसे ज्यादा इसलिए मैं खामोश हूँ

शब्दों ने साथ नहीं छोड़ा मेरा बस होठ सीले हैं

बातें मैं कर रही हूँ अब भी तुझसे

फर्क बस इतना है तूने अब मुझे सुनना छोड़ दिया  हैं  |

 

मायूस हैं आँखें मेरी ये मंज़र देख कर

जिसे इल्म था मेरे  हर एक एहसास का

वो अब मूह फेर चला हैं |

 

ना मैं कल बदली थी ना आज बदली हूँ

बस कल तू मुझे समझता था

आज तूने मुझे समझना छोड़ दिया हैं |

 

तेरे हर एक इल्जामात तहेदिल से स्वीकार है

पर ये नागवार हैं की नामुमकिन हैं मुझे समझना

वजह भी बेबुनियाद ही दिया तूने क्यूंकि मैं एक औरत हूँ

तुझे भी क्या कुसूर दूं

तू भी तो इसी अवधारणा से ग्रसित हैं की औरत एक रहस्यमय जीव |

 

आज वास्ता हैं तुझे प्यार के हर एक एहसास का 

सिद्दत से एक हलकी सी कोशिश करके तो देख

मुझे मुझसे बेहतर समझ लेगा तू |

 

कैसे बताऊँ तुझे की ज़ख्म-ए-नासूर हैं मेरी ख़ामोशी की वजह

दर्द के तेज़ाब से मुख बेजुबान हैं

और मन की बेईचैनी ने पहने हिजाब हैं |

 

गम इस बात का नहीं की तुम मुझे याद नहीं करते

मलाल बस इतनी सी है की अब तुम मुझे पहचानते  नहीं |

 

एक ही पल में हम उन्हें हम-नफ़स मान बैठे

अगले ही पल वो हमे अलविदा कह गए |

 

प्यार हजारों सीतम ढाता हैं

फिर भी मजबूर दिल उसे ही गले लगाता हैं

कुसूर किसीका भी नहीं

क्यूंकि हर दिल वक्त के हाथों मजबूर होता हैं |

 

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