सिर्फ मेरा प्रेम

thebiharnews-in-sirf-mera-pyaarप्रेम ,अपने आप में एक सम्पूर्ण दर्शन है ।ये एक प्रेरणा है और प्रेरणा का पोषक भी है। आज जिस माधवी को सभी जानते है उसे एक अच्छी लेखिका मानते है उसके वास्तविक सृजक ,रचयिता तुम हो,तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम है।

प्रेम कब होगा कहाँ होगा किसी को पता नहीं होता। मुझे भी नहीं था की जीवन के इस मोड़ पर एक बच्चे की माँ होने के बाद मेरे नीरस जीवन में प्रेम का आगमन होगा। हाँ मैं एक शादीशुदा स्त्री हूँ। समाज की नज़र में मैं एक ऐसे दौर में हूँ जहां पराये पुरुष से प्रेम करना एक अपराध से कम नहीं। पर मैं लाचार हूँ विवश हूँ। ये पेम मेरे आत्मा की जरूरत है देह की नहीं। ये मेरे नीरस जीवन में रस की महीन सी धार है जिससे मेरी आत्मा को जीवन मिलता है।

बचपन से ही पुरूषों के द्वारा औरतों के लिए बनाये हुए नियमों में मेरा पालन हुआ। इन नियमों की एक लंबी लिस्ट है जो ये बताते है की उसे क्या करना चाहिए ,क्या नहीं करना चाहिए। 12- 13 साल की उम्र में मुझे कहानियों की पहली किताब मिली और उस समय से जो मुझे पढ़ने की ये “बुरी लत” लगी वो लगातार बढती गयी। घर की बूढ़ी दादी और ताइयो से बचने के लिए मैंने रात में टोर्च की रोशनी में पढ़ना शुरू कर दिया। देश विदेश के जो भी लेखकों की किताबें मिलती मैं उन्हें पढ़ डालती। शिवानी ,महाश्वेता देवी ,आशापूर्णा देवी,रेनू ,प्रेमचंद, शरतचंद्र ,धर्मवीर भारती से लेकर गाए दी मोम्पास ,टॉलस्टॉय, एरिक सेगल ,चार्ल्स डिकेंस तक जो भी मिले मैंने पढ़ा।इन किताबों को पढ़ने के बाद बड़ी इच्छा होती किसी से अपने अनुभवों को बांटू ,पर दूर दूर तक कोई ऐसा न था।

विवाह के बाद मुझे लगा अब शायद ऐसा कोई मिले जिससे मैं अपने अनुभवों और भावनाओं को बाँट सकूँ पर ऐसा नहीं हुआ।नीरज एक भले इंसान है,पर बहुत ही नीरस। उनसे बस दाल रोटी की बातें की जा सकती हैं।

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अपनी साहित्यिक भूख को यहां वहां से किताब मांग कर पूरी करती रही । इस भूख ने लिखने की इच्छा पैदा की।कुछ लिखा भी और एकाध बार मेरी कहानियां छपी भी पर इस ख़ुशी को साझा करने वाला मेरे पास कोई न था। उसी दौरान मुझे तुम्हारी प्रेम कथाओं की एक किताब मिली। तुम्हारी उन प्रेम कहानियों ने मेरे दिल को गहराई से छू लिया। अपने दिन भर के नीरस एक रस दिनचर्या में तुम्हारी रचनाएं मेरे लिए ठंडी हवा का झोंका है। प्रेम एक ऐसा अनुभव था जिससे मैं कभी परिचित न हो पाई थी ,जिसका मुझे कभी वास्तविक अनुभव न था। तुम्हारी कहानियो ने उससे मेरा परिचय कराया। लगा कोई प्रेम को और इंसान की भावनाओं को इतनी गहराई से कैसे समझ सकता है।प्रेम ही नहीं लगभग सभी विषयों पर तुम्हारी कलम धारदार है, सीधे दिल को छू जाती हैं। मैं तुम्हारी पुस्तकों को ढूंढ ढूंढ कर पढ़ती।नीरज से अनुनय-विनय कर तुम्हारे जो भी नये संग्रह बाजार में आते उन्हें मंगाती।तुम्हारी कहानियों ने मुझे इंसानी मन की गहराइयों का, उसकी उलझनो , उसकी सोच की सीमाओं का परिचय कराया। तुम्हारे नाम “साकेत “ से मुझे एक लगाव सा हो गया।
तभी नीरज का स्थांनातरण हिंदी विभाग में हुआ।उसी हिंदी विभाग में जिसमे तुम एक उच्च पदस्थ अधिकारी थे। नीरज ने जब मुझे इस बात की सूचना दी तो मेरे हृदय के तार यूँ देर तक झं-कृत होते रहे मानो मैं तुम से मिल कर आयी हूँ। अब जब भी नीरज ऑफ़िस से आते मैं उनसे तुम्हारे बारे में कुछ सुनना चाहती। कुछ न सही तो तुम्हारा नाम ही सही। जिस दिन वो तुम्हारी कुछ चर्चा करते मेरी वो शाम मानो बेले,गुलाबो की खुशबुओं से महकती रहती।

नीरज ने बताया इतने बड़े लेखक होते हुए भी साकेत जी बहुत विनम्र स्वभाव के हैं। वह हमारे टेबल पर आ जाते हैं बातें करते हैं कभी-कभी वह हमारे टेबल पर आकर हमारा खाना भी खाते हैं।उस दिन दिल में अजीब सी गुदगुदी हुई। लगा तुमने मेरे हाथों का बना खाना खाया मानो भगवान ने भक्त के भोग को स्वीकार लिया हो। तुम जिस दिन मेरे घर आये मुझे लगा मेरा घर मेरे लिए मंदिर हो गया।नीरज ने तुम्हें शायद बता दिया था की मैं लिखती हूँ अपने छद्म नाम माधवी से। तुम कुछ चौके शायद तुम्हें याद आ गया की तुम्हारी एक प्रसंशिका जो तुम्हें प्रसंशा के पत्र लिखती है उसका नाम भी माधवी है। जाते जाते जब तुमने कहा अच्छा लिखती हैं लिखना जारी रखें। तुम्हारे शब्द मेरे कानों में कई दिनों तक बाँसुरी की तरह बजाते रहे। तुम्हारा हर ज़िक्र मुझे ऊर्जा देता है उत्साह देता है।तुम्हारे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन ने मानो एक ढहती हुई इमारत का जीर्णोद्धार कर दिया। एक अरमान जो जीवन की आपाधापी के तले कहीं दब गया था फिर से नज़रों के सामने आ गया। मेरे टेबल पर फिर से पेन और कागज़ दिखने लगें। किसी के कटाक्ष या तीखी नज़ारे मुझे अब नहीं रोक सकते थे ।

अपने इस प्रेम के कारण मुझे कोई अपराधबोध नहीं।बल्कि अब नीरज पहले से ज्यादा अच्छे लगते हैं बेटी की मुस्कराहट पहले से ज्यादा प्यारी लगाती है। अब ज़िंदगी खूबसूरत लगाती है।मुझे प्रेम है तुम्हारी शख्सियत से ,तुम्हारे लेखन से ,भावनाओं से।तुम मेरे लिए रूपहीन , रंगहीन हो। तुम मेरे हृदय के उस निर्जन प्रदेश के एकलौते वासी हो जिसमे आजतक किसी ने प्रवेश नहीं किया। तुम मेरे प्रेम के स्रोत हो आंतरिक ऊर्जा के स्रोत हो। मेरा यह प्रेम निशब्द है,सात्विक है, आत्मिक है।मेरा प्रेम कोई प्रति-दान नहीं खोजता ,ये सिर्फ और सिर्फ मेरा है।

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