“माँ स्वाति को आशीष नाम का एक लड़का प्यार करता है और शादी करना चाहता है। वह उसके घर के बगल में किराए पर रहता है। उसकी माँ भी स्वाति को पसंद करती है। वह अपने पैरों पर भी खड़ा है। व्यवहार में भी बहुत अच्छा है। पर एक ही समस्या है वह दूसरी जाति का है। इसलिए स्वाति के परिवार वाले नहीं मान रहे हैं। शादी के लिए एक बुड्ढा सही वर है पर एकअच्छा लड़का सिर्फ दूसरे जाति का होने के कारण अयोग्य है क्या बकवास है ?”

“यही होता आया है बेटा” उसने देखा माँ के चेहरे पर बहुत से भाव आने जाने लगे।

“पर मा क्यों? क्यों हर बार लड़कियां कुर्बानी देंगी। जब पाल नहीं सकते तब 5-5 बेटियां क्यों पैदा किया उन्होंने? क्या उनकी गलती नहीं है ? इसकी सजा स्वाति क्यों भुगते? जैसा वो चाह रहे हैं मैं उन्हें ऐसा करने नहीं दूंगी।”

 

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माँ उसकी सूरत देख रही थी मानो सोच रही हो कि उसके जैसे दब्बू  की ऐसी दबंग बेटी कैसे हो गई।  

“ठीक है पर तुम मुझे क्यों बता रही हो यह बातें?”

“माँ मुझे तुम्हारी थोड़ी मदद चाहिए।“

“क्या मेरी? मेरे समझाने से उसके माता पिता मान जाएंगे?”

“माँ समझाना नहीं है उसकी मदद करनी है।“

“ठीक है पर कैसे?”

“आशीष चाहता है की स्वाति घर छोड़कर उसके साथ चलें और जहां वह नौकरी करता है दोनों वहीं जाकर एक नई जिंदगी शुरु करें।” निधि ने कह तो दिया पर उसे डर लग रहा था की माँ ने अगर इस बात का कड़ा विरोध किया तो क्या करेगी।निधि ने माँ आरती की ओर देखा लगा वह विचारों में कहीं खोई है।

थोड़ी देर बाद आरती ने कहा ”पर बात पूरी तरह अभी भी मेरी समझ में नहीं आई।“

“दरअसल बात यह है की आशीष की नौकरी जहां है हमारे शहर के स्टेशन से उस जगह के लिए एकमात्र ट्रेन रात के 3:30 बजे जाती है। इतनी रात में स्वाति का निकलना मुश्किल है इसलिए उसे रात में कहीं और रुकना होगा। ताकि 3:30 बजे की ट्रेन वहां से पकड़ सके।“

“और तुम चाहती हो कि वह यहां रुके. भला उसके परिवार वाले उसे यहां क्यों रुकने देंगे। इन सब झंझटों में तुम मत पड़ो बेटा।“

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