“अरे तुम पूरी बात तो सुनो। स्वाति की योजना उस दिन घर छोड़ने की है जिस दिन हमारी दोस्त कानन की शादी है। वह शादी में रुकने की बात कह कर कानन के यहां जाएगी और फिर 12-1 बजे तक वहां से यहां आ जाएगी और फिर यहां से निकल जाएगी। घर वाले सोचेंगे वह कानन के यँहा है। सुबह जब तक वह लोग उसे ढूंढेंगे तब तक वह काफी दूर निकल जाएगी। उन्हें पता भी नहीं चलेगा क्योंकि आशीष की नौकरी कहां है वह लोग नहीं जानते।“

“पर हमारे ही घर से क्यों कानन के यहां से चली जाये।“ आरती ने  बात काटते हुए कहा वह नहीं चाहती कि माँ बेटी झंझट में फंसे।

“दरअसल माँ इसलिए क्योंकि उसकी कुछ जरूरी चीजें उसने धीरे धीरे कर मेरे पास इकट्ठे कर रखी है।“ तब तो पूरी योजना तैयार है फिर मुझसे पूछ क्यों रही हो। पूरा इंतजाम कर रखा है तुमने हमें फसाने का। गुस्से में आरती ने कहा।

“नहीं माँ  किसी को पता नहीं चलेगा।  मैं तो कानन के यंहा रहूंगी पूरी रात। कोई नहीं जान पाएगा कि मैंने मदद की है“

आरती बिना कुछ बोले उठ गई।

“माँ क्या हुआ? कुछ बोलो ना।“

“तुम क्या जानोगी इन सब बातों में कितने लफ़ड़े हैं?”

निधि चुप हो गई। माँ ने हां तो नहीं कहा पर उसे माँ से जितने विरोध की शंका थी माँ ने उतना विरोध भी नहीं किया।

रात का खाना खाकर माँ बेटी सोने गए। निधि तो सो गई पर आरती की आंखों में नींद नहीं थी। 23 साल पहले के अतीत से बाहर निकलकर कुछ यादें उमर-घुमड़ करने लगी। आंखों के सामने सारी घटनाएं सिनेमा के दृश्यों की तरह जीवंत हो उठी।

23 साल पहले की आरती एक खूबसूरत 17-18 साल की युवती थी। आज की तरह अल्पभाषी नहीं। बल्कि मितभाषी और वाचाल। आरती के पिता आर्थिक रुप से इतने मजबूत ना थे कि अपनी चारों बेटियों की  आराम से और अच्छी शादी कर सके।  आरती सभी बहनों में सबसे बड़ी थी इसलिए आरती की शादी वह जल्दी से जल्दी कर देना चाहते थे ताकि बाकी बहनों की भी समय पर शादी हो सके। आरती के ही घर के बगल में शर्मा जी का एक परिवार रहता था जिनसे उसके परिवार के अच्छे संबंध थे।  शर्मा जी का बेटा आकाश आरती को पसंद करता था।  

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