आरती भी उसे पसंद करती थी। जब भी दोनों का आमना-सामना होता आरती शरमा कर रह जाती और सर झुका कर भाग जाती। आकाश ने आरती की आंखों में अपने लिए प्यार देखा था।  इसी कारण उसने अपने माता-पिता से बात की। शर्मा जी की पत्नी आरती के पिता की हालत जानती थी और वह यह भी जानती थी मजबूरीवश वह आरती की शादी के लिए कोई ढंग का लड़का नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं। इसलिए उन्हें लगा कि शायद विजातीय होते हुए भी वह अपनी लड़की की भलाई के लिए उनका प्रस्ताव मान जाए। पर ऐसा हुआ नहीं।  

उनके प्रस्ताव पर आरती के माता-पिता दोनों भड़क गए और उन्हें भला बुरा कहने लगे। कहने लगे कि उनकी मजबूरी है तो क्या वह अपनी बेटी की शादी दूसरी जाति में करने का पाप करेंगे।  आरती ने जब यह बातें सुनी तो वह घुटकर रह गई। घटना के बाद एक बार आकाश ने मौका पाकर उस से बातें करने की कोशिश की। कहा की अगर तुम सच में मुझे चाहती हो तो चलो मेरे साथ जहां मेरी नौकरी है। हम दोनो वहां खुशी-खुशी रह लेंगे। पर आरती कुछ कहा ना सकी।  उसकी आंखों से आंसू गिर पड़े और वह ना में सर हिला कर वहां से चली गई।

 

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आरती की इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने परिवार के खिलाफ जाए। इस घटना के तुरंत बाद उसके पिता ने उसकी शादी केशव से करा दी। उस समय आरती की उम्र थी 18 और केशव जी 40 के। उम्र के साथ-साथ दोनों के व्यक्तित्व से लेकर सोच सब में फर्क था। शादी के बाद उसने जो जिंदगी बिताई वह उसके जीवन का सबसे ख़राब अध्याय है। केशव जी उसकी कोई बात नहीं सुनते थे। उसे बोलने का अधिकार नहीं था उसे कहीं आने-जाने यहां तक की स्वतंत्र रुप से कुछ सोचने का भी अधिकार नहीं था। एक तो केशव उम्र में इतने अधिक थे और उस पर से उनका भयावाह व्यक्तित्व, आरती उनके सामने डर से कांपती थी।

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