बिहार में नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) के तहत कोविड-19 के प्रकोप की शुरुआत (मार्च 2020 से मई 2021) के बाद से कम से कम 2,51,000 अतिरिक्त मौतें दर्ज की गई हैं। यह संख्या इस अवधि के दौरान राज्य में कोरोना वायरस की वजह से हुई आधिकारिक मौतों से 48.6 गुना है।
जनवरी 2015 और मई 2021 के बीच राज्य की नागरिक पंजीकरण प्रणाली में दर्ज मौतों के आधार पर बिहार के आंकड़े में बहुत अंतर है, यह देश में अबतक किसी भी राज्य के अंदर मौत के आंकड़ों में देखा गया सबसे बड़ा फर्क है। ‘अत्यधिक मौत’ या मृत्यु दर एक जनरेलाइज्ड शब्द है जो संकट के दौरान सभी कारणों से होने वाली मौतों की कुल संख्या को दिखाता है, जो नियमित परिस्थितियों में अपेक्षित से ऊपर परे है।
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सभी मौतें कोविड-19 की वजह से नहीं हुई हैं लेकिन एक महामारी के दौरान मौत के आंकड़ों में आए अंतर का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रकोप से जुड़े होने की संभावना रहती है। इससे क्षेत्रीय हेल्थकेयर सिस्टम पर दबाव पड़ता है।
यहां विश्लेषण के लिए, महामारी से पहले की अवधि (जनवरी 2015 से फरवरी 2020) के सीआरएस डेटा को एक ऑल कॉज मोरटैलिटी बेसलाइन बनाने के लिए औसत किया गया है, इसकी तुलना मार्च 2020 में दर्ज मौतों से की गई है, जिसके परिणामस्वरूप ‘अतिरिक्त मौतों’ की संख्या सामने आई है।
अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर, इस तरह का डाटा मानव जीवन पर महामारी के वास्तविक प्रकोप के बारे में अहम जानकारी देता है। बिहार के लिए, डाटा से पता चलता है कि महामारी से पहले, चार साल (2015-2019) की अवधि की तुलना में प्रकोप की शुरुआत के बाद से 2,51,053 अधिक मौतें हुई हैं।
मई के अंत तक राज्य के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 5,163 थी। इसका मतलब है कि सीआरएस आंकड़ों से पता चलता है कि आधिकारिक कोविड-19 की मौत का आंकड़ा 48.6 गुना कम था। कोविड-19 प्रकोप के दौरान राज्य सरकारों ने ग्राउंड डेटा को इकट्ठा करने के लिए इस सिस्टम को शुरू किया था। यह रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के कार्यालय के तहत सभी जन्म और मृत्यु को रिकॉर्ड करने की राष्ट्रीय प्रणाली है। इसका उपयोग उन मौतों की संख्या की गणना करने के लिए किया जा रहा है जो महामारी से नहीं होती हैं।