सुहागिन महिलाओं के अखंड सुहाग के लिए गुरुवार को भाद्रपद शुक्ल तृतीया के हस्त नक्षत्र व शुक्ल योग में हरितालिका तीज मनाई गई। सुहागिन महिलाओं ने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना से निराहार व निर्जला व्रत रखा। शिव के समान सुयोग पति की कामना के लिए कुंवारी लड़कियां ने भी इस व्रत को विधि-विधान से किया। शहर के विभिन्न मंदिरों व घरों में सुहागिनों ने माता पार्वती एवं भगवान शिव की पूजा-अर्चना कर हरितालिका तीज व्रत की कथा सुनी। जगह-जगह कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र, शुक्ल व जयद योग के साथ 14 वर्षों बाद रवियोग में हरितालिका तीज व्रत का विधान वर्णित है। आचार्यों के अनुसार पुण्य योग में व्रत करने से अखंड सौभाग्य, सुख-समृद्धि, निरोग काया एवं पति की चिरायु, यश-वैभव, कीर्ति के साथ सर्व मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद मिलता है। तीज व्रत करने वाली सुहागिन स्त्रियों शिव-पार्वती की पूजा कर अखंड सौभाग्य का वर मांगा।
आचार्य माधवानंद ने बताया कि माता पार्वती ने वन में जाकर भोलेनाथ को अपने पति के रूप में पाने के लिए अन्न तथा जल ग्रहण किये वगैर सालों तक तप किया I तब शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था I
त्रेता युग से हरितालिका तीज व्रत की परंपरा
आचार्य राकेश कुमार झा हरितालिका तीज व्रत की परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है I माता पार्वती ने पहली बार शिव शंकर की बालू की प्रतिमा बनाकर पूजा की थी। महिलाओं ने मिट्टी से भोलेनाथ-गौरी की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की। पूरे दिन निराहार या फलाहार रहकर पूरे विधि-विधान से पूजा कर कथा श्रवण किया। महिलाएं शुक्रवार को पारण करेंगी।
संतान की दीर्घायु के लिए चौथचंद्र (चउरचन) व्रत आज
मिथिलांचल के प्रसिद्ध त्योहार चौथचंद्र (चउरचन) व्रत शुक्रवार को स्वाति नक्षत्र, ब्रह्म व रवियोग के युग्म संयोग में मनाया जाएगा। श्रद्धालु संतान के दीर्घायु, आरोग्य एवं निष्कलंक के लिए ऋतुफल, दही तथा पकवान हाथ में लेकर चंद्र दर्शन करते हैं। इस दिन चन्द्रमा के पूजन एवं अर्घ्य देने से मनोविकार से मुक्ति, आरोग्यता, ऐश्वर्य, संतान के दीर्घायु होने का वरदान मिलता है। इसी दिन गणेश भगवान ने चन्द्रमा को श्रापमुक्त करके शीतलता एवं सौंदर्य का वरदान दिया था।