छठ महापर्व संपन्न होने के बाद घरों में अब अक्षय नवमी की तैयारी शुरू हो गई है। कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी तिथि पांच नवंबर को राजधानी सहित पूरे प्रदेश में अक्षय नवमी मनायी जाएगी। इसे धातृ नवमी कूष्मांड नवमी व आंवला नवमी भी कहा जाता है। आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष के पूजन के साथ ही पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए पूजन का विशेष महत्व है। अक्षय नवमी पर गंगा स्नान और दान का खास महत्व है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय रहता है यानी जिसका नाश कभी नहीं होता। इसलिए लोग गुप्त दान भी करते हैं। सतयुग की शुरुआत इसी दिन हुई थी।
आंवले के पेड़ के नीचे पूजा
ज्योतिषाचार्य विपेंद्र झा माधव के अनुसार आंवले के पेड़ के नीचे धातृ देवी व दामोदर (विष्णु भगवान) की पूजा-अर्चना की जाएगी। उनसे अपने पापों के नाश करने की प्रार्थना की जाती है। इसके बाद पितरों के मोक्ष के लिए आंवले पेड़ की जड़ में दूध की धार दी जाएगी। फिर एक सूत्र(धागा) पेड़ से बांधा जाता है। आखिर में प्रदक्षिणा की जाती है।
गांवों में अधिक धूमधाम, रहता है पिकनिक जैसा माहौल
इस दिन आंवले के पेड़ों के नीचे भोजन बनाकर खाने-खिलाने की परंपरा है। आंवला या धातृ पेड़ के नीचे लोग चावल, दाल, सब्जी आदि बनाकर खाते और लोगों को भी खिलाते हैं। शहरी क्षेत्र के मुकाबले गांवों में इस नवमी की अधिक धूमधाम रहती है। पिकनिक जैसा माहौल रहता है।