ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण और पूजा के अधिकार के मुकदमे की सुनवाई प्रक्रिया को होईकोर्ट की रोक से दूसरी बार झटका लगा है। इसके पहले 1998 में निचली अदालत के आदेश पर हाईकोर्ट ने रोक लगायी थी। करीब 20 वर्ष बाद 2018 में मुकदमे में अधिवक्ता रहे विजय शंकर रस्तोगी ने प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर के वादमित्र के तौर पर सिविल जज सीनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) में प्रार्थन पत्र देकर सुनवाई शुरू करने की मांग की थी।
बता दें कि वर्ष 1991 में स्वयंभू विश्वेश्वर की ओर से डॉ. रामरंग शर्मा, हरिहर पांडेय व सोमनाथ व्यास ने एफटीसी कोर्ट में याचिका दायर कर नया निर्माण व पूजा करने के अधिकार की मांग की थी। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को प्रतिवादी बनाया गया। अदालत ने लम्बी सुनवाई के बाद 1997 में वादी व प्रतिवादी दोनों के पक्ष में आंशिक निर्णय दिये थे। फैसले से असंतुष्ट प्रतिवादी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। 13 अगस्त 1998 को हाइकोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी।
इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि स्थगन आदेश छह माह बाद स्वत: खारिज हो जाएंगे। इस पर वर्ष 2018 में मुकदमे में अधिवक्ता रहे विनय शंकर रस्तोगी ने अदालत में प्रार्थना पत्र देकर वादमित्र नियुक्त करने की मांग की थी। तब तक दो वादकारियों का निधन हो चुका था। तीसरे वादी अदालत जाने में सक्षम नहीं थे। लिहाजा, विनय शंकर रस्तोगी ने 2019 में मूल वाद में अलग से प्रार्थना पत्र देकर पुरातत्व विभाग की ओर से सर्वेक्षण करने की अनुमति मांगी। इसके बाद सर्वेक्षण प्रकरण पर सुनवाई शुरू हो गई। आठ अप्रैल को एएसआई को विभिन्न प्रक्रियाओं के तहत सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था।
वादी का पक्ष
प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में अपील की थी कि काशी विश्वनाथ मंदिर व विवादित ढांचास्थल का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया जाये। दावा किया कि ढांचा के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के जुड़े पुरातात्विक अवशेष हैं। कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के 9130, 9131, 9132 रकबा नं. एक बीघा 9 बिस्वा लगभग जमीन है। उक्त जमीन पर मंदिर का अवशेष है। 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथमतल में ढांचा और भूतल में तहखाना है। इसमें 100 फुट गहरा शिवलिंग है। मंदिर का 1780 में अहिल्यावाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया था। यह भी कहा कि 100 वर्ष तक 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं रहा। बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास के विभागाध्यक्ष एएस अल्टेकर ने बनारस के इतिहास में लिखा है कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग 100 फीट का था। अरघा भी 100 फीट का बताया गया है। लिंग पर गंगाजल बराबर गिरता रहा है, जिसे पत्थर की पटिया से ढक दिया गया। यहां शृंगार गौरी की पूजा-अर्चना होती है। तहखाना यथावत है। यह खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा।
विपक्षीगण का पक्ष
विपक्षीगण अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ता रईस अहमद अंसारी, मुमताज अहमद और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड अभय यादव व तौफीक खान ने पक्ष रखा कि जब मंदिर तोड़ा गया तब ज्योतिर्लिंग उसी स्थान पर मौजूद था, जो आज भी है। उसी दौरान राजा अकबर के वित्तमंत्री राजा टोडरमल की मदद से स्वामी नरायण भट्ट ने मंदिर बनवाया था, जो उसी ज्योतिर्लिंग पर बना है। ऐसे में ढांचा के नीचे दूसरा शिवलिंग कैसे आया। ऐसे में खुदाई नहीं होनी चाहिए। रामजन्म भूमि की तर्ज पर पुरातात्विक रिपोर्ट मंगाने की स्थितियां विपरीत थीं। उक्त वाद में साक्षियों के बयान में विरोधाभास होने पर कोर्ट ने रिपोर्ट मंगाई गई थी। जबकि यहां अभी तक किसी का साक्ष्य हुआ ही नहीं है। अभी प्रारम्भिक स्तर पर है। ऐसे में साक्ष्य आने के बाद विरोधाभास होने पर कोर्ट रिपोर्ट मांगी जा सकती है। सिर्फ साक्ष्य एकत्र करने के लिए रिपोर्ट नही मंगाई जा सकती है।
एएसआई को अपने खर्चे पर सर्वे का था निर्देश
अदालत ने आदेश दिया है कि सर्वेक्षण में ग्राउंड पेनेट्रेटिंग राडार (जीपीआर) या जिओ रेडियोलॉजी तकतीकी या दोनों से सर्वे कराया जाए। इसका पूरा खर्च एएसआई खुद उठाए। अपने आदेश में यह भी कहा है कि सर्वे या जांच के दौरान विवादित स्थल पर नमाज आदि का कार्य में कोई बाधा नहीं पहुंचे। कमेटी में हिंदू व मुस्लिम संप्रदाय से केवल एक प्रतिनिधि बनाएं, जो सर्वे के दौरान मौके पर जरूर रहे। कोर्ट ने यह भी कहा हि यदि जरूरत पड़े तो खुदाई भी करें, लेकिन चार वर्ग फीट से ज्यादा चौड़ाई नहीं होनी चाहिए। यह कार्य प्रतिदिन सुबह 9 से शाम 5 बजे के बीच में कराएं। इस दौरान पुलिस और प्रशासन की मदद लें। कार्य शुरू करने से पहले सभी पक्षों को सूचित करें।