thebiharnews-in-bhikhari-thakur“ चलनी के चालल दुलहा, सूप के फटकारल हे,
दिअका के लागल बर, दुआरे बाजा बाजल हे।
आँवा के पाकल दुलहा, झाँवा के झारल हे;
कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे “

बिहार के शादी-ब्याहो में औरतों द्वारा गाया जाने वाला ये गीत हम सभी ने सुना होगा। इस गीत को भोजपुरी के कई गायकों ने भी आवाज़ दी है,पर बहुत कम लोग जानते है की इस गीत के रचयिता कौन है। इस गीत के रचयिता “भोजपुरी के शेक्सपिअर “ कहे जाने वाले श्री भिखारी ठाकुर।

बहुआयामी प्रतिभा के धनी भिखारी ठाकुर एक ही साथ कवि, गीत कार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया। राहुल सांकृत्यायन ने उनको ‘अनगढ़ हीरा’ कहा था तो जगदीश चंद्र माथुर ने ‘भरत मुनी की परंपरा का कलाकार’। उनको ‘भोजपुरी का शेक्सपिअर ‘ भी कहा गया।

प्रारम्भिक जीवन

भिखारी ठाकुर का जन्म १८ दिसम्बर १८८७ को बिहार के सारन जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था।[2] उनके पिताजी का नाम दल सिंगार ठाकुर व माता जी का नाम शिवकली देवी था।
वे जीविकोपार्जन के लिये गाँव छोड़कर खड़गपुर चले गये। वहाँ उन्होने काफी पैसा कमाया किंतु वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे। रामलीला में उनका मन बस गया था। इसके बाद वे जगन्नाथ पुरी चले गये।
अपने गाँव आकर उन्होने एक नृत्य मण्डली बनायी और रामलीला खेलने लगे। इसके साथ ही वे गाना गाते एवं सामाजिक कार्यों से भी जुड़े।भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व में कई आश्चर्यजनक विशेषताएँ थी। मात्र अक्षर ज्ञान के बावजूद पूरा रामचरित मानस उन्हें कंठस्थ था। इसके साथ ही उन्होने नाटक, गीत एवं पुस्तकें लिखना भी आरम्भ कर दिया। उनकी पुस्तकों की भाषा बहुत सरल थी जिससे लोग बहुत आकृष्ट हुए।

भिखारी ठाकुर की रचनाएँ

भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। वे एक साथ रंगकर्मी,गायक,अभिनेता होने के साथ-साथ नाटकों गीतों और भजनों के रचयिता भी थे।
भिखारी ठाकुर के लिखे प्रमुख नाटक हैं- बिदेसिया, भाई-विरोध, बेटी-वियोग, कलयुग-प्रेम, राधेश्याम-बहार, बिरहा-बहार, नक़ल भांड अ नेटुआ के, गबरघिचोर, गंगा स्नान (अस्नान), विधवा-विलाप, पुत्रवध, ननद-भौजाई आदि। इसके अलावा उन्होंने शिव विवाह, भजन कीर्तन: राम, रामलीला गान, भजन कीर्तन: कृष्ण, माता भक्ति, आरती, बुढशाला के बयाँ, चौवर्ण पदवी, नाइ बहार आदि की भी रचनाएं की।
उनके अभिनय एवं निर्देशन में बनी भोजपुरी फिल्म ‘बिदेसिया’ आज भी लाखों-करोड़ों दर्शकों के बीच पहले जितनी ही लोकप्रिय है। उनके निर्देशन में भोजपुरी के नाटक ‘बेटी बेचवा’, ‘गबर घिचोर’, ‘बेटी वियोग’ का आज भी भोजपुरी अंचल में मंचन होता रहता है।फिल्म बिदेसिया की ये दो पंक्तियां तो भोजपुरी अंचल में मुहावरे की तरह आज भी गूंजती रहती हैं-
“हँसि हँसि पनवा खीऔले बेईमनवा कि अपना बसे रे परदेश।
कोरी रे चुनरिया में दगिया लगाई गइले, मारी रे करेजवा में ठेस!”

समाजिक कुरीतियों के खिलाफ कदम

आज़ादी के आंदोलन में भिखारी ठाकुर ने अपने कलात्मक सरकारों के साथ शिरकत की। अंग्रेजी राज के खिलाफ नाटक मंडली के माध्यम से जनजागरण करते रहे। इसके साथ ही नशाखोरी, दहेज प्रथा, बेटी हत्या, बाल विवाह आदि के खिलाफ अलख जगाते रहे।
हर नयी शुरुआत को टेढ़ी आंखों से देखने वाले सामाजिक व्यवस्था के ठेकेदारों से भिखारी अपने नाटकों के साथ लड़े। वो अक्सर नाटकों में सूत्र धार बनते और अपनी बात बड़े चुटीले अंदाज़ में कह जाते। अपनी महीन मार की मार्फत वो अंतिम समय तक सामाजिक चेतना की अलख जगाते रहे।

आज भी प्रासांगिक

उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को सामीजिक सरोकारों के साथ ऐसा पिरोया कि अभिव्यक्ति की एक धारा भिखारी शैली जानी जाने लगी। आज भी सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार का सशक्त मंच बन कर जहाँ-तहाँ भिखारी ठाकुर के नाटकों की गूंज सुनाई पड़ ही जाती है। 1 9 71 में ठाकुर की मृत्यु के बाद, उनकी थिएटर शैली की उपेक्षा हुई फिर भी, समय के साथ इसने एक नया आकार ले लिया है और उनकी ‘लौंडा डांस’ शैली लोकप्रिय हो गई। बिहार शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जो एक पुरुष महिलाओं के वस्त्र पहनकर नृत्य प्रस्तुत करता है जैसे कि यह सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य है।

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