देश भर में गूंज रही बिहार के सीतामढ़ी की बांसुरी की धुन, नेपाल में भी डिमांड
बाजार से गुम हो रही बांसुरी की धुन को जीवंत रखने में जुटा है जिले का रीगा प्रखंड स्थित बसुरिया टोल। एक जमाना था जब यहां के बच्चे से लेकर बूढ़े तक बांसुरी बनाकर जीवन यापन करते थे। अभी करीब दो दर्जन लोग बांसुरी बनाते हैं। यहां की बांसुरी की मांग छपरा, सहरसा, सारण और मुजफ्फरपुर के अलावा देश के अन्य राच्यों के साथ नेपाल तक है।
छोटी बांसुरी के लिए ये लोग नरकट का उत्पादन भी कर रहे हैं। जबकि, उत्तम क्वालिटी की बांसुरी तैयार करने के लिए ये कारीगर छपरा और सिवान जैसे शहरों से माल की खरीदारी करते हैं।
डिमांड के अनुसार तैयार करते बांसुरी
बसुरिया टोल के कारीगर मो. नजामुद्दीन, फातमा खातून, बकरीदीन साह, शफीक साह, कुमरूद्दीन आदि बताते हैं कि मांग के अनुसार कच्चा माल, उत्तम क्वालिटी का बांस छपरा, गोपालगंज और सिवान से लाते हैं। तैयार बांसुरी का रंग रोगन कर मध्य प्रदेश, ओडिशा, नेपाल तक आपूर्ति करते हैं। पूंजी का अभाव है।
नई पीढ़ी का दिल इस काम में नहीं लगता है। क्योंकि, इससे जो आमदनी होती है उससे सिर्फ गुजर बसर हो जाता है। इसके बावजूद इस पेशे से घर भी बनाया और बच्चे का पालन पोषण भी कर रहा हूं। अगर सरकार की ओर से कुछ सहायता मिले तो इस रोजगार को बड़े पैमाने पर करूंगा।
मेले में होती अधिक आमदनी
कारीगर स्वयं माल लाते हैं। निर्माण करते हैं और स्वयं बाजार में बेचते भी हैं। बताते हैं कि मेले के अवसर पर बांसुरी की मांग अधिक होती है। यही कारण है कि विभिन्न स्थानों पर लगने वाले मेले में बांसुरी की अधिक खपत होती है। छोटे बच्चे के लिए बांसुरी का निर्माण नरकट से किया जाता है। जो आसपास सड़क के किनारे स्वयं उगाते हैं। लेकिन, उत्तम क्वालिटी की बांसुरी निर्माण के लिए बाहरी माल पर निर्भरता बरकरार है।
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कहा सीतामढ़ी के श्रम अधीक्षक ने-
‘बांसुरी निर्माण करने वाले शिल्पकार श्रेणी में आते हैं। इसलिए श्रम विभाग में कोई योजना नहीं है। लेकिन, उद्योग विभाग में कारोबार को वृहद करने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था है। अगर ये कारीगर प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और अपने उद्योग का विस्तार करना चाहते हैं तो उन्हें सरकार की योजना से लाभान्वित किया जा सकता है।
मनीष कुमार, श्रम अधीक्षक, सीतामढ़ी।
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