बाल विवाह के मामले में बिहार है देश में सबसे आगे

सांकेतिक चित्र

पटना-देश में बाल विवाह के मामले में पश्चिम बंगाल नहीं, बिहार नंबर 1 पायदान पर है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की संशोधित फाइनल रिपोर्ट यही बताती है। साथ ही ठप्पा ठोंकती है कि इस कुरीति के खिलाफ चौतरफा जंग क्यों जरूरी है? यह इकलौता दाग सूबे की सेहत ही नहीं मानव विकास के तमाम मानकों पर राज्य को पीछे धकेलने के लिए जिम्मेदार है।

चंद महीने पहले नंबर पर दो था बिहार

कच्ची उम्र में शादी का सीधा वास्ता बच्ची के मानसिक-शारीरिक विकास से तो है ही, शिशु-मृत्यु दर, मातृत्व मृत्यु दर, प्रजनन दर (टीएफआर), कुपोषण, अनीमिया, स्टंटिंग ( समुचित विकास न होने से पनपने वाला ठिगना पन) आदि के बीज भी इसी में छिपे है। इन तमाम मोर्चों से जूझने के लिए सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा खर्च होता है।

क्योंकि हर मोर्चे के लिए अलग-अलग योजनाएं हैं। यहां बता दें कि चंद महीने पहले जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की फैक्टशीट में बाल विवाह के मोर्चे पर बिहार का स्थान देश में दूसरा था। संशोधित रिपोर्ट ने रैंकिंग बदल दी है। यह सब तब है जब देश में बाल विवाह रोकने का कानून 2006 में लागू हुआ। रिपोर्ट, कानून लागू होने के 10 साल बाद आई है।

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