केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने गुरुवार को हाईकोर्ट में 10वीं बोर्ड परीक्षा रद्द किए जाने के बाद आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर अंक दिए जाने की अपनी नीति को सही बताया है। सीबीएसई ने कहा कि उसने इस बात को ध्यान में रखकर नीति बनाई है कि अंक देने में किसी छात्र के साथ अन्याय न हो और उसकी वास्तविक योग्यता पर अंक मिले।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायूमर्ति ज्योति सिंह की पीठ के समक्ष सीबीएसई ने यह दलील दी है। सीबीएसई ने कहा है कि न्यायसंगत, निष्पक्ष और विश्वसनीय परिणाम सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ‘परिणाम समिति’ को दी गई है। सीबीएसई ने गुरुवार को पीठ के समक्ष कहा कि स्कूलों और उसके शिक्षा विशेषज्ञों द्वारा तैयार मूल्यांकन नीति से किसी भी छात्र के साथ भेदभाव या अन्याय नहीं होगा।

सीबीएसई ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ को यह जानकारी दी। याचिका में सीबीएसई को 10वीं कक्षा के छात्रों के आंतरिक मूल्यांकन की नीति में संशोधन की मांग की गई है। सीबीएसई ने पीठ को यह भी बताया है कि 12वीं की बोर्ड परीक्षा रद्द किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों को अंक देने के लिए इसी नीति (10वीं कक्षा के मूल्यांकन नीति) को मंजूरी प्रदान की है। साथ ही कहा कि 12वीं कक्षा में भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसी नीति को अपनाया जा रहा है। इसी के साथ याचिकाकर्ता के आरोपों को आधारहीन बताते हुए सीबीएसई ने जनहित याचिका को रद्द करने की मांग की। गैर सरकारी संगठन जस्टिस फॉर ऑल की ओर से अधिवक्ता खगेश झा और शिखा बग्गा ने याचिका में सीबीएसई द्वारा 10वीं कक्षा के छात्रों के आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर अंक देने की नीति (अंक देने के लिए टेबुलेशन मार्क्स पॉलिसी) पर सवाल उठाया है। याचिका में कहा गया है कि इस नीति से कई मेधावी छात्रों का नुकसान होगा।

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