गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में – भारतेंदु हरीशचंद्र
गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार
होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ यार
होली में
नहीं ये है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर
जगह प्यारे
ये आशिक की है उमड़ी आहें
आतिशबार होली में
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी
जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार
होली में
है रंगत जा़फ रानी रुख अबीरी
कुमकुम कुछ है
बने हो खुद ही होली तुम ऐ दिलदार
होली में
रस गर जामे-मय गैरों को देते हो तो
मुझको भी
नशीली आंख दिखाकर करो सरशार
होली में
मार दी तुझे पिचकारी – सूर्यकांत त्रिपाठी, निराला
मार दी तुझे पिचकारी,
कौन री,
रंगी छबि यारी?
फूल-सी देह ,
द्युति सारी,
हल्की तूल-सी संवारी,
रेणुओं-मली सुकुमारी,
कौन री,
रंगी छबि वारी?
मुसका दी,
आभा ला दी,
उर-उर में गूंज उठा दी,
फिर रही लाज की मारी,
मौन री रंगी छबि प्यारी।
तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है – हरिवंशराय बच्चन
तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक
दुनिया की रंगीनी,
रंक तु रही कोरी की कोरी
मेरी चादर झीनी,
तन के तार छूए बहुतों ने
मन का तार न भीगा,
तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है।
अंबर ने ओढ़ी है तन पर
चादर नीली-नीली,
हरित धरित्री के आंगन में
सरसों पीली-पीली,
सिंदूरी मंजरियों से है
अंबा शीश सजाए,
रोलीमय संध्या ऊषा की चोली है।
तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है।