डिजीटल जमाने में सोशल मीडिया से पैदा हो रहे है नेता… दयानन्द सिंह चंदेल 

आज एक पोस्ट पर आये कामेंट को पढ़ रहा था। पढ़कर आत्मचिंतन करने की जरूरत महसुस हो रही है। आत्मचिंतन इस बात के लिए कि आजादी के बाद राजनीति की शुरूआत कैसे हुई, देश के नेताओं की उत्पत्ति कैसे हुई??
वैसे मैं इस मुद्दे पर पहले भी लिख चुका हूँ पर उस वक्त और आज में एक और कड़ी जुड़ गया है नेताओं की उत्पत्ति का।
तो शुरू करते हैं आजादी से। देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी गई। उस लड़ाई में कई शहीद हुए और जो बचे वो राजनीति शुरू किये… देश की आजादी में उनका योगदान रहा हो या न रहा हो, साल छह महीने ही क्यों न रहा हो…. ये सभी सत्ता पर काबिज हुए। वक्त बढता गया और देश के राजनीतिज्ञों को लगने लगा कि दबंगों की सहायता ली जाए चुनावों में…. इसलिए नेताओं ने दबंगों और अपराधियों से सहयोग लिया मतदाताओं को एक पक्ष में वोट डलवाने के लिए, नेता को जीताने को लेकर बुथ पर कब्जा करने के लिए। बदलते वक्त में दबंगों और अपराधियों को लगा कि जब मेरे डर से नेता को वोट दिलवाकर जीताया जा सकता है तो क्यों न खुद ही चुनाव लड़ी जाए। चुनाव के लिए रूपयों की जरूरत पड़ी तो अपने प्रवृति के हिसाब से सेठ साहुकारो, व्यवसाइयों और उद्यमियों से रंगदारी ली जाने लगी। कई कारोबारी तो डर से खुद ही हर तरह की मदद देने लगे दबंगों और कुख्यात अपराधियों को, और इस तरह आजादी की लड़ाई लड़कर नेता बनने का जमाना दफन होकर अपराध के रास्ते नेता बनने का रिवाज शुरू हो गया।
कालचक्र चलता रहा और देश के बिजनेस मैन, उद्यमियों…. जो अपराधियों समेत अपराधियों को राजनीति में लाने वाले नेताओं को फंडिंग दे रहे थे…. उन उद्यमियों और व्यलसाईयों को लगा कि जब फंडिंग कर हम दुसरों को नेता बनने में सहयोग करते हैं तो क्यों न खुद ही चुनाव लड़ा जाए…. और इस तरह आजादी की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं के बाद अपराध और अपराध के बाद व्यवसाय और उद्योग बना नेता बनने का आधार।
इस दौरान नेता और अपराधी से बने नेताओं से कार्यकर्ताओं की बाढ़ सी आ गई। अब इन कार्यकर्ता रूपी नुक्कड़ छाप नेताओं को भी बड़ा नेता बनने का शौक जागा…. तो वो जलजमाव, नाली, बिजली, पानी और सड़क जैसे मुद्दों पर दो चार दिन सड़क जाम किये, धरना दिये, प्रदर्शन किये और हो गये नेता…!
शुरू हो गई राजनीति अगला चुनाव लड़ने की। किसी पार्टी ने टिकट दिया तो ठीक… वरना निर्दलीय ही उतर गये मैदान में ताल ठोककर…!
अब तक जितने भी नेता बने वो थोड़ा या ज्यादा पहले अपना कुछ न कुछ गंवाया ही। चाहे आजादी के बाद बचे नेता हो, चाहे दबंग और कुख्यात अपराधी, चाहे बिजनेस मैन या फिर गली नुक्कड़ के नेता…!

पर आज के बदले परिवेश और इस डिजीटल जमाने में नेता बनने का भी तरीका डिजीटल हो गया है। नेता बनने के लिए कुछ नहीं करना है। न कहीं जाकर किसी को हमदर्दी जतानी है, न किसी के मैयत मंजिल में जाना है न कोई समाज सेवा करने की जरूरत है।
बस एक कम्प्यूटर या लैपटॉप ले लिजिये और अगर ये नहीं ले सकते हैं तो एक एंड्रॉयड या स्मार्टफोन ले लिजिये। फटाफट फेसबुक एकाउंट खोल लिजिये, ट्विटर एकाउंट खोल लिजिये और मैसेजों के आदान प्रदान करने के लिए वाट्सअप जरूर खोल लिजिये… और शुरू हो जाइये सोशल मीडिया पर, घर बैठे नेता बनने के लिए राजनीति पर दो चार लच्छेदार ज्ञान सबों से साझा करते रहिये।
हाँ… कुछ करिये या नहीं करिये, किसी को किसी तरह का मदद किजिये या नहीं किजिये…. मगर छठी, मुंडन, शादी विवाह, श्राद्ध, गांव मुहल्ले के सामाजिक कार्यक्रमों में दो चार मिनट के लिए जरूर जाइये। इन कार्यक्रमों में जाते ही सबसे पहले एक सेल्फी लिजिये और सारे सोशल मीडिया पर फोटो चेंप कर लिख दीजिये…. “” फलाना के शादी श्राद्ध, छठी मुंडन आदि इत्यादि में मिलते हुए, शामिल हुआ””, आशिर्वाद दिया, आंसु पोछा, सिर मुंडन कराया…. फलाना के मां के अर्थी को कंधा देते हुए…….. मतलब सोशल मीडिया पर आपके पोस्ट को देखते ही लोगों को महसुस हो जाए कि आप ही हैं सबसे बड़े समाजसेवी, आप ही हैं आज के सच्चे नेता,….. जनता आहें भर कर बोले…. काश आप होते उसके सांसद विधायक…! बस फिर क्या… हो गये नेता…!

और इस तरह 72 सालों के आजाद भारत में नेता के उत्पत्ति के इस बहुआयामी दौर का चौथा चरण चल रहा है जो सोशल मीडिया से नेता पैदा कर रहा है। वो पुराने जमाने की घिसी पिटी बात हो गई… जब लोग समाज सेवा के रास्ते, राज्यहीत या राष्ट्रहीत के लिए किये जाने वाले प्रयासों/आंदोलनो के रास्ते नेता बना करते थे। आज डिजीटल जमाना है तो जाहिर है नेता भी डिजीटल ही पैदा होंगे।

गुस्ताखी माफ
(दयानन्द सिंह चंदेल)

Facebook Comments
Previous articleभारत के तीन फ़िल्म एएसीटीए में फ़िल्म पुरस्कार के लिए नामित..पढ़े पूरी खबर..
Next articleपटना सिटी में फिर से चलाया गया पर्यावरण संरक्षण एवं जागरूकता अभियान
Udhav has completed his Bachelor's and Master's degree in Journalism and Mass Communication from Nalanda Open University in Patna. He writes about all social issues and as he says in his own words, "HE IS A JOURNALIST BY EDUCATION"