पत्रकारों के लिए कितनी सुरक्षित है पत्रकारिता की दुनिया?
भारत एक लोकतांत्रिक देश हे जहां लिखने की आजादी संविधान देता है। लोकतंत्र के चार स्तंभो में से एक है मीडिया जिसकी जिम्मेदारी है कि वो सच को सामने लाये और देश में हो रही घटना से जनता को रूबरू कराये पर आज शायद चौथे स्तंभ पर ही खतरा मंडरा रहा है।
बीते 14 जून को जम्मू-कशमीर मे “राईजिंग कश्मीर” के संपादक शुजात बुखारी की बड़ी बेहरहमी से हत्या कर दी गई। शुजात कश्मीर की आवाम के लिए एक आव़ाज थे, जिससे शायद आतंकवादियों को खतरा महसूस हो रहा था। शुजात उस शाम अपने ऑफिस से इफ्तार पार्टी में जा रहे थे जब उन पर हमला हुआ, तीन नकाबपोश आरोपियों ने उनपर अंधाधुंध फाइयरिंग की , जिसके बाद घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई। शुजात बुखारी की मौत एक बड़ा और अहम सवाल छोड़ती हे कि क्या कलम की ताकत पर भी लगेगी रोक ? क्या कश्मीर में सच लिखने पर पत्रकारो की इतनी बेहरहमी से हत्या कर दी जाएगी? घाटी में और भी ऐसे कई मामले है जिनमे पहले भी पत्रकारों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी।
अलत़ाफ अहमद फतुक की 1जनवरी 1997 को गोली मार कर हत्या कर दी थी।
गुलाम मोहम्मद लोनी की मौत 29 अगस्त 1994 को गोली मार कर हुई थी, गुलाम फ्रीलांस रिपोर्टर थे।
गुलाम रसुल शेफ की 10 अप्रैल 1996 को मौत हो गई।
जावेद अहमद मिर की मौत 13 अगस्त 2008 को हुई।
सीनियर फोटेग्राफर अशोक सोडी 11 मई 2008 को सुरक्षाबलों और आतंकवादियों की मुठभेड़ के दौरान मारे गए।
देश में ऐसा पहली बार नही हो रहा हे जब किसी पत्रकार की इतनी निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई, इससे पहले भी देश के कई अलग- अलग हिस्सों मे पत्रकारो की हत्या हुई है। गौरी लंकेश, हरिप्रकाश , बज्रेश कुमार सिंह जैसे पत्रकारो की हत्या कर दी गई। UNESCO की माने तो 2017 में विश्वभर मे 71 रिपोर्टरो की हत्या हुई थी। अनुमान है कि हर चार दिन में एक रिपोर्टर की हत्या की जाती हे जब वे किसी स्टोरी को कवर कर रहे थे।
वहीं वलर्ड प्रेस की रिपोर्ट की माने तो मेक्सिको, अफ्गानिस्तान, श्रीलंका , पाकिस्तान, सीरिया जैसे देशों के बाद भारत का नाम आता हैं। भारत मीडिया से संबिधित लोगों के लिए सुरक्षित नही है।
2017 मीडिया के लिए सुखद नही रहा , उसने अपने कई बेहतरीन पत्रकारों को खोना पड़ा। हरिप्रकाश (2 जनवरी), ब्रजेश कुमार सिंह (3 जनवरी),श्याम शर्मा ( 15 मई), सुरेन्द्र सिंह राणा (29 जुलाई),गोरी लंकेश(5 सिम्तबर), सातंणु भोविक( 21 नम्बर), नवीन गुप्ता(30 नम्बर), राजेश सोरेन(21 दिसंबर) । हम बस यही उम्मीद करते हैं कि आगे इस तरह की कम से कम वारदातें हो और पत्रकार निडर होकर हर खबर लोगों के सामने ला सके।