पर शुभ्रा ने मेरा साथ नहीं दिया।  उसने सीधे-सीधे शब्दों में कह दिया कि वह इतनी एहसान फरामोश नहीं है कि जिन्होंने उसे आसरा दिया उन्हें धोखा दे। हां अगर मां पापा शादी के लिए हां कह देते हैं तो वह भी मान जाएगी।  मैं बड़ा चिढ  गया। चिढ में मेरे मुंह से निकल गया कि इस तरह तो ज्योत्सना  की बात सही साबित हो जाएगी। शुभ्रा को थोड़ा बुरा लगा। पर उसने शांत मन से कहा मैंने मां पापा की रजामंदी की बात की जायदाद तो तुम चाहे लो या छोड़ो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।कहकर वह चली गई।

शुभ्रा से मेरी वह अंतिम मुलाकात थी।  इस बात को  8 साल 3 महीने 26 दिन गुजर गए हैं। इन 8 सालों में मैं हर लड़की में शुभ्रा को ही  ढूंढता रहा। वह कहां है कैसी है मुझे नहीं पता।

तभी मोबाइल के बीप-बीप ने उसका ध्यान भंग किया। वह अपने अतीत से वापस लौट आया। पापा का मैसेज था “आज तो आ जाओ।” निखिल ने हां में जवाब दिया और भारी कदमों से घर की ओर चल पड़ा। वह घर जहां 8 सालों से वो  जाने से कतराता रहा था।

घर पर अच्छी खासी भीड़ थी। निखिल ने देखा मां  बीमार सी दिख रही थी। पापा थोड़े संभले हुए थे। वह एक मेहमान की तरह जाकर बाहर के कमरे में बैठ गया  सामने ज्योत्सना की बड़ी सी तस्वीर थी इसमें भी उसके चेहरे पर घमंड दिख रहा था। इसी घमंड ने निखिल का घर नहीं बसने दिया।

वह अंदर के कमरे में गया तो चौंक पड़ा। अंदर के कमरे में शुभ्रा सफ़ेद सलवार कुर्ते में खड़ी पापा से कुछ बातें कर रही थी।  उसे लगा उसके हाथ पैरों में अजीब सी गुदगुदी होने लगी।  8 सालों बाद भी वो उतनी ही सुंदर थी। वह एकटक उसे देखता रहा है।  तभी शुभ्रा का ध्यान उसकी तरफ गया तो वो हल्के से मुस्कुराइ  और दूसरे कमरे में चली गई।  वह पापा के पास गया उसके मुंह से केवल “शुभ्रा”  निकला। पापा ने धीरे से कहा “मैंने बुलाया है उसे। वह अभी भी अकेली है” उसे नहीं पता पापा ने ऐसा क्यों कहा पर इस बात से उसके दिल में एक खुशी की लहर दौड़ गई। उसके मन ने कहा आज उसने इन चंद कदमों का फासला नहीं तय किया तो जीवन भर अपने को माफ नहीं कर पाएगा। एक निश्चय के साथ वह शुभ्रा के सामने खड़ा था।

थोड़े झिझक के साथ शुभ्रा ने कहा” कैसे हो ?”

“ठीक नहीं हूँ “ बस वह इतना कह  सका उसकी आंखों में नमी तैर गई।  उसने शुभ्रा का हाथ पकड़ा और बालकनी में लाकर खड़ा कर दिया और  बोलना शुरु कर दिया।

” मुझे नहीं पता इन 8 सालों में तुम्हें कोई मिला या नहीं मिला पर मुझे कोई नहीं मिली।  मैं सिर्फ और सिर्फ तुम को खोजता रहा। पर अब मैं थक गया हूं। मुझे सुकून से भरा घर और एक जीवन साथी चाहिए। प्लीज मैरी मी।”

शुभ्रा के चेहरे पर आश्चर्य और झेंप के भाव देख वो बोला “हां मुझे पता है यह गलत वक़्त है इन सब बातों के लिए।  पर जब मैं 8 साल इंतजार कर सकता हूं तो कुछ दिन या कुछ महीने और इंतजार कोई बड़ी बात नहीं।” अपनी बात कह जब वह शुभ्रा की ओर मुड़ा तो उसने देखा वह हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी।निखिल को  अपना जवाब मिल गया था।

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Susmita is a homemaker as well as a writer. She loves writing whatever comes in her mind either its about home affair or about social or political affairs. She believe sharing your opinion is a great power of human being which can make social changes and bring people together. She believe enjoying every sip of life.