बिहार के मशहूर शायर कलीम आजिज की याद में सजी अदब की महफिल
कलीम आजिज उन अजीम शायरों में से एक थे, जिनकी वजह से पूरी अदबी दुनिया में बिहार का नाम रोशन हुआ। करीब आधी सदी तक उर्दू साहित्य सेवा के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा है। जिस दिलकश अंदाज में उन्होंने गजलें लिखीं, उसे हमेशा जमाना याद रखेगा। कलीम आजिज की गजलें दर्द की कहानियां हैं।
ये बातें उर्दू निदेशालय के निदेशक इम्तियाज अहमद करीमी ने कहीं। वे बुधवार को मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के उर्दू निदेशालय की ओर से मशहूर शायर पद्मश्री से सम्मानित डॉ. कलीम आजिज की याद में सजी अदब की महफिल को संबोधित कर रहे थे।
कार्यक्रम का आयोजन बेली रोड स्थित अभिलेख भवन में दोपहर 2 बजे से हुआ। अध्यक्षता उर्दू परामर्शदात्री समिति के अध्यक्ष शफी मशहदी ने की। उन्होंने कहा कि नि:संदेह कलीम आजिज महान कवि थे, लेकिन उर्दू साहित्य जगत में उन्हें वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। विषय प्रवेश कार्यक्रम संयोजक डॉ. मो. असलम जावेदां ने किया। उन्होंने कलीम आजिज को उर्दू गजल की आबरू कहा।
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कलीम आजिज का स्थान विशिष्ट
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद पूर्व मंत्री शमायल-ए-नबी ने कहा कि कलीम आजिज उर्दू जगत के महान कवि थे। यदि उनके अवदानों की ईमानदारी से समीक्षा की जाए तो काव्य और साहित्य में उनका स्थान विशिष्ट होगा। विशिष्ट अतिथि जेएनयू के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अय्यूब शफी ने कहा कि कलीम आजिज की जात पर हम फख्र करते हैं। वहीं आलेख पाठ के दौरान प्रो. अलीमुल्लाह ने कहा कि कलीम आजिज की शायरी में व्यंग्य बहुत ही फनकारी के साथ पेश की गई। बीआरएबीयू मुजफ्फरपुर के भूतपूर्व उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. फारूख अहमद सिद्दीकी ने कहा कि कलीम आजिज एक खुशनवा फकीर थे। भूतपूर्व आईजी और उर्दू के विद्वान मासूम अजीज काजमी ने कलीम आजिज से अपने घनिष्ठ संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि उनसे हमने बहुत कुछ सीखा है।
छात्रों ने भी पेश किए आलेख : कलीम आजिज की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने भी आलेख पाठ किए। इनमें पटना विवि की शबीना ईशरत, फरीदा शाहीन और हैदराबाद की शगुफ्ता परवीन ने कलीम आजिज की शायरी और जिंदगी से जुड़े पहलुओं पर रोशनी डाली।
बज्म-ए-सुखन में जमा रंग
कार्यक्रम के अंत में बज्म-ए-सुखन के तहत संक्षिप्त कवि गोष्ठी हुई। इसकी अध्यक्षता कर रहे अभय कुमार बेबाक ने सुनाया-‘तकल्लुफ है जो मेरी गुफ्तगू में, तअल्लुक उसका है उर्दू जुबां से’। अब्दुल मन्नान तर्जी ने सुनाया-आप है ऐ जाने जां मेरी गजल की आबरू, सच तो ये है कि गजल का मिसरा-मिसरा आप हैं। वहीं तल्हा रिज्वी बर्क ने सुनाया-ठीक सुबह वही, मगर नजारा था नया, मौसम के बदलने का इशारा था नया, जब कत्ल की ताबीर करामात हो, तशबीह थी नई इस्तेआरा था नया। अनवर इरज ने कहा अब फसाने के हर किरदार बदलने होंगे, वक्त बदले हैं तो इजहार बदलने होंगे। कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों को पुरस्कार व प्रशस्ति पत्र से नवाजा गया।