हो गए है लोग आज कल

किसी तहसीलदार की तरह …

लगता है जैसे,

विश्वास को सूद का व्यपार समझ रखा हैं,

कहते फिरते है लोग आज कल

मैंने दिया है दिल तुम भी दो…

इसे क्या ?

बाज़ार में बिकने वाला सामान समझ रखा है।।

प्यार है ये कारोबार नही

इसे क्या

मज़ाक समझ रखा हैं ।।

आशीष है ये श्री कृष्ण की

इसे क्या?

मैला गंगा घाट समझ रखा है।।

खुश्बू हैं ये माँ के हाथों के खीर की

इसे क्या ?

जनता की तक़दीर समझ रखा हैं,

चालाकी , बेईमानी , दौलत और चापलुसी

इसे क्या?

राज दरबार समझ रखा हैं।।

ना जाने क्यों सभी ने इसे व्यपार समझ रखा है।।

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