हिंदू धर्म में हर एक व्रत और त्योहार का विशेष महत्व है। इन व्रत और त्योहारों में अलग-अलग देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है। ऐसे ही त्योहारों में से एक 16 दिनों तक मनाया जाने वाला महालक्ष्मी व्रत भी भाद्रपद की अष्टमी तिथि से आरंभ होता है। इस व्रत में मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को संपन्न होते हैं।
मान्यता है कि महालक्ष्मी व्रत करने से जीवन की समस्याएं दूर होती हैं और मां लक्ष्मी की कृपा से मन की मुरादें पूरी होती हैं। हिंदू धर्म में इस व्रत को काफी शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। 16वें दिन महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन करते हैं। जानिए महालक्ष्मी व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा-
महालक्ष्मी व्रत महत्व-
महालक्ष्मी व्रत का विधि-विधान से पूजन करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। जिस घर में महिलाएं इस व्रत को करती हैं, उस घर में पारिवारिक शांति बनी रहती हैं।
महालक्ष्मी व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त-
महालक्ष्मी व्रत सोमवार, सितम्बर 13, 2021 को
महालक्ष्मी व्रत प्रारम्भ सोमवार, सितम्बर 13, 2021 को
महालक्ष्मी व्रत पूर्ण मंगलवार, सितम्बर 28, 2021 को
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 13, 2021 को 03:10 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – सितम्बर 14, 2021 को 01:09 पी एम बजे
महालक्ष्मी व्रत के चौघड़िया मुहूर्त-
दिन का चौघड़िया मुहूर्त- 6:05 ए एम
रात्रि का चौघड़िया मुहूर्त- 6:29 पी एम
अमृत काल- 06:05 ए एम से 07:38 ए एम
जानिए महालक्ष्मी व्रत कथा-
एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह हर दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु का अराधना करता था। एक दिन उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और ब्राह्मण से एक वरदान मांगने के लिए कहा। तब ब्राह्मण ने उसके घर मां लक्ष्मी का निवास होने की इच्छा जाहिर की। तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण को लक्ष्मी प्राप्ति का मार्ग बताया। भगवान विष्णु ने कहा कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है और वह यहां आकर उपले थापती है। तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना वह मां लक्ष्मी हैं।
भगवान विष्णु ने ब्राह्मण से कहा, जब मां लक्ष्मी स्वयं तुम्हारे घर पधारेंगी तो घर धन-धान्य से भर जाएगा। यह कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। अगले दिन ब्राह्मण सुबह-सुबह ही मंदिर के पास बैठ गया। लक्ष्मी मां उपले थापने के लिए आईं तो ब्राह्मण ने उनसे घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर माता लक्ष्मी समझ गईं कि यह विष्णुजी के कहने पर ही हुआ है।
लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा कि मैं तुम्हारे साथ चलूंगी लेकिन तुम्हें पहले महालक्ष्मी व्रत करना होगा। 16 दिन तक व्रत करने और 16 वें दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी। ब्राह्मण ने मां लक्ष्मी के कहे अनुसार व्रत किया और मां लक्ष्मी को उत्तर दिशा की ओर मुख करके पुकारा। इसके बाद मां लक्ष्मी ने अपना वचन पूरा किया। माना जाता है कि तभी से महालक्ष्मी व्रत की परंपरा शुरू हुई थी।