एक हक़ के साथ गढ़ रखा था मैंने,
मेरे नाम को
पहले ही पन्ने पर।।
खफ़ा है आज वो मुझसे ,
किसी दोस्त की तरह,
और खफ़ा हो भी क्यों ना ,
कोई कसर भी तो नही छोड़ी थी,
मेरे उस दो रंगे साथी ने साथ निभाने में।।
मैं लेटा लेटा सोचा करता था
और
वो मेरे सिरहाने से लग कर मेरी तरह ही छत को एक टक देखा करता था ।।
याद है मुझे मैंने आठवें पन्ने पर अपने पहले प्यार के मख़मली एहसाश को भी जग़ह दी थी ।।
मेरे अंदर छुपे ख्यालों के समुन्द्र में पहली डूबकी लगाने वाला भी तो वही था,
मेरा वो दो रंगा साथी ।।
थोड़ा बेवफ़ा सा मैं ही हो गया हूं आज कल किसी माशूका की तरह,
तभी तो तुझे देख कर भी अनदेखा कर देता हूँ,
शायद हमारा साथ ही इतना था
या शायद
मैंने एक विराम लिया है ।।।
मैं वादा करता हूँ ,
हम फिर चलेंगे एक सफर पर,
रचेंगे मिलकर फिर एक स्वाद भरी कहानी
या कोई दर्द ।।
फिर से देखेंगे मिलकर छत को ,
मैं मोतियों को इकठा कर पिरोऊंगा ओर तुम उसे सहेजते जाना
हमरा साथ सारी ज़िन्दगी का है मेरे दो रंगे साथी ।।
सारी ज़िन्दगी का।।