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1मुझ मे है तू

आज जब मैंने उसकी तस्वीर दीवार पर लगायी तो लगा मानो वो सामने ही खड़ी है। अन्विता ने उस पर लगाने के लिए हार भी लाने के लिए कहा था, पर मैंने कहा हार तो उनकी तस्वीरों पर लगते हैं जो ना रहें, जिंदगी तो मेरे अंदर जिंदा है। उसका नाम जाह्नवी था। पर मैं उसे जिंदगी बुलाता था क्योंकि वह मेरे लिए मेरी जिंदगी थी। वह भगवान का एक अनमोल उपहार थी उन सब के लिए जो उसे जानते थे। आप भी अगर उसे जानते तो ऐसा ही मानते।

पहली बार मैंने उसे एक शादी में देखा था। चहचहाती, खुशी से लबरेज़। उसके व्यक्तित्व में सबसे खूबसूरत उसकी खिलखिलाहट थी। झरने का मधुर संगीत, नदी की कलकल, चिड़ियों सी चहचहाट खूबसूरत हंसी के लिए आज तक जितनी भी उपमाएं मैंने किताबों में पढ़ी थी उसे देख कर लगा कि वह सब उसके लिए ही लिखी गयी थी। बड़े, बूढ़े, बच्चों सब के साथ घुल मिल जाती। शादी में दूल्हे के पक्ष वाले लोग दहेज के लिए लेकर खींचातानी कर रहे थे। जाह्नवी आई और कोने में दूल्हे को ले जाकर उसने दूल्हे से कुछ कहा। दूल्हे के तरफ के सभी लोग मंडप में आकर शांति से बैठ गए। शादी के बाद मैंने उससे पूछा तो जिंदगी हंसने लगी और कहा कुछ खास नहीं बस इतना कहा मैंने कि मैं पत्रकार हूं अगर आज तुम लोगों ने दहेज़ के लिए ज्यादा नौटंकी की तो कल ये खबर मैं मिर्च मसाला लगाकर सबके घर पहुंचा दूंगी। फिर सोच लो शायद ही कोई लड़की वाला तुम्हारे दरवाज़े पर आये।

उसी शादी में मैं उसे दिल दे बैठा था, उसके दो महीने बाद ही ज़िन्दगी ने दुल्हन बनकर मेरे घर में कदम रखा। हम दोनों के स्वभाव बिल्कुल विपरीत थे। मैं अंतर्मुखी और वो बहिर्मुखी। शायद “opposite attracts” वाले सिद्धांत ने हमें बाँधा था। स्वभाव की विभिन्नता ने कभी भी हमारे बीच तनाव नहीं पैदा किया। हम दोनों एक दूसरे के विचारों का सम्मान करते थे, भले ही सहमत ना हो।

उसे समाज सेवा की लत थी। हाँ उसे लत ही कहेंगे। जब भी कोई उससे मदद मांगता था वह ना नहीं कर पाती थी। कई बार लोगों ने उसे बुद्धू भी बनाया जब मैं उसे ऐसा करने से रोकने के लिए कहता था कि तुम्हें 10 बार में से 9 बार लोग बुद्धू बना जाते हैं तो ज़िन्दगी कहती ठीक है एक बार तो किसी सही आदमी की मदद करती हूँ, तुम्हारी बात मानूं तो वह भी ना कर पाऊं।
जब उसका पहला जन्मदिन आया मैं बहुत खुश था और बड़े धूमधाम से उसे मनाना चाहता था। पर जिंदगी एक दिन पहले बोली की कल का क्या प्रोग्राम है। मैं इसके पहले की उसे विस्तार से सुनाता वह कहने लगी कितना खर्च करोगे यह बताओ। मुझे बड़ा गुस्सा आया। पर वो जिद पर अड़ गई। वो जिद्दी बहुत थी। इसलिए मुझे बताना पड़ा। वह बोली ठीक है इतने पैसे कल मेरे हाथ में दे देना मैं जन्मदिन मनाऊंगी पर किसी अनाथालय में। हजार बार मना करने पर भी वह नहीं मानी उसके बाद उसने अपना हर जन्मदिन शहर के अलग-अलग अनाथालयों में मनाया। शादी के कुछ सालों बाद उसकी बुआ ने बताया कि ज़िंदग़ी के पैदाइश के समय है उसकी मां की मृत्यु हो गई थी पिता ने दूसरी शादी कर अलग घर बसा लिया।ज़िंदग़ी दादी के घर में पली-बढ़ी। तब मुझे पता चला अनाथों के प्रति उसके लगाव की वजह। मेरे नजर में उसका सम्मान और बढ़ गया।

मेरी हर जरुरत और चाहत का ख्याल रखना उसका पहला उद्देश्य रहता था। मुझे कब क्या चाहिए उसे बखूबी पता होता। कई बार तो मेरे बोलने के पहले वह मेरी जरूरत जान जाती बड़ा आश्चर्य होता। एक बार रात का समय था वह दूसरे कमरे में सो रही थी मैं स्टडी रूम में लैपटॉप पर काम कर रहा था। मैं सर दर्द से परेशान था। अचानक वह हाथ में पानी और पेन किलर ले कर आ गई। कहने लगी तुम्हें सर दर्द हो रहा है। मैंने उसे आश्चर्य से देखा। कहने लगी मुझे ऐसा लगा क्योंकि तुम्हारी उंगलीयां लैपटॉप के की-बोर्ड पर बड़े जोर जोर से चल रही थी।
हद दर्ज़े की आस्तिक और आशावादी थी। आशावादी तो इतनी की क्रिकेट में जब भारत बिल्कुल हार के कगार पर होता है तब भी वो कहती मुझे लगता है अभी भी इंडिया के जीतने के चांस है। कोई भी काम गड़बड़ हो तो कहती क्यों टेंशन लेते हो भगवान ने कुछ अच्छे के लिए ही ऐसा किया होगा। मुझे बड़ी कोफ्त होती उसके इस वाक्य से। हमारे जीवन में कोई दुख नहीं था। सिवाए इसके की जिंदगी की कोख शादी 6 -7 साल के बाद भी सुनी थी। जब भी हम डॉक्टर के यहां से निराश होकर आते वो दो-तीन घंटे गुमसुम सी रहती। उसे ऐसा देखने की आदत मुझे न थी। एक दिन मैंने कह दिया अब बताओ तुम्हारे साथ जो हो रहा है उसमें तुम्हारा भगवान क्या अच्छा करना चाहता है। वह बोली एक दिन वह भी पता चल जाएगा।

दोस्तों का एक पूरा हजूम था उसके पास। सभी के जन्मदिन, शादी की सालगिरह, बच्चों के जन्म सब याद रखती, भले ही अपनी ज़रूरते भूल जाए।
हम दोनों बहुत खुश थे। पर इस खुशी पर उसकी बीमारी ग्रहण बनकर आई। कभी कोई अच्छा इंसान मरता तो मां कहती भगवान को भी अच्छे लोगों की जरूरत होती है मुझे लगा वह सच कहा करती थी। इधर कुछ दिनों से जिंदगी की तबियत ठीक नहीं चल रही थी हमेशा की तरह वो अपनी बीमारी को लेकर लापरवाही रही। उसकी कैंसर का पता अंतिम स्टेज पर चला मैंने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी पर उसकी हालत दिनों दिन बिगड़ती गई। मैं उसे कुछ नहीं बताता। पर उसे अंदाजा हो गया था कि वह ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है। इस स्थिति में भी उसकी सोच सकारात्मक रहें। एक दिन मुझसे कहने लगी जानते हो आश्विन शायद मुझे भगवान् ने कोई संतान इसलिए नहीं दी क्योंकि अगर मै अपने पीछे कोई संतान छोड़ जाती तो ना मैं चैन से मर पाती नहीं मुझे मरने के बाद चैन पड़ता है। मैं अवाक रह गया उसकी सूरत निहारता रहा और कमरे से बाहर निकलकर खूब रोया।
अंतिम दिनों में उसने अपने घर जाने की जिद कर दी। कहने लगी हॉस्पिटल में नहीं मरना चाहती। दवाइयों के गंध से मेरा दम घुटता है। इस गंध को अगर सांसों में लेकर मरी तो ऊपर जाकर भी यह गंध मेरा पीछा नहीं छोड़ेंगा। उसकी जीद पर मैं उसे घर ले आया घर में घुसते ही उसने इतने जोर से सांस भरी मानो वह पूरे फेफड़े में घर की खुशबू भर लेना चाहती हो।

उसे लिखने का बड़ा शौक था।छोटी-छोटी कविताएं लिखती थी जब खुश रहती हैं उन्हें गुनगुनाती भी थी। उसने अंतिम समय में भी अपने इस शौक को नहीं छोड़ा। दो पंक्तियां वो हमेशा गुनगुनाती “आजकल मैं लगती हूँ तुझ सी हूबहू,
क्योंकि तुझ में हूँ मैं और मुझ में है तू।
दवा और दुआ है कुछ काम ना आए। जब उसने अंतिम सांस ली घर में अच्छी ख़ासी भीड़ थी। मुझे याद नहीं उसके जाने के बाद सारे काम की व्यवस्था किसने कि, मुझसे क्या क्या कहा गया करने के लिए। मुझे तो होश ही ना था।
एक महीने बाद उसकी सबसे अच्छी दोस्त अंजलि आई। मेरे हाथ में एक खत दे कर कहने लगी जाने के पहले मुझे जाह्नवी ने दिया था आपको देने के लिए। मैंने आश्चर्य से खत् खोला। आंखों के सामने उसके मोतियों से अक्षर नाचने लगे।

प्रिय अश्विन ,
जाते-जाते तुमसे दो चीजें माँगना चाहती हूँ। अगर तुम खत पढ़ रहे हो मैं इस दुनिया में नहीं हूँ। पर ऐसा बाकी दुनिया के लिए है तुम्हारे लिए मैं हमेशा जिंदा हूँ तुम्हारे अंदर। इसलिए मेरे जाने के बाद भी जिंदगी को तुम उतनी ही पूर्णता से जीना जैसे मैं जिती थी। तुम सोचना मैं तुम्हारे अंदर जिंदा हूं तुम अगर दुखी हुए तो मेरी आत्मा को बहुत दुख पहुँचेगा। ये मेरी पहली ख्वाहिश है।
दूसरी चीज, मैं जानती हूं तुम इच्छा या अनिच्छा से मेरी सारी बातें मानते रहे हो। आज भी मेरी ये अंतिम इच्छा मान लेना। दो-तीन पहले मैं अनाथालय गई थी अंजलि के साथ। वहां मेरी मुलाकात एक लड़की से हुई नाम था अन्विता ,उम्र होगी 20 साल। कुछ दिनों पहले वह बलात्कार का शिकार हुई। दुर्घटना के बाद भी वह रोज इस हादसे से गुज़र रही है। लोगों की नजरों- तानो और मनचले लड़कों की गंदी नजरों के कारण। मैं चाहती हूँ तुम उससे शादी कर घर ले आओ। मैं जानती हूं वो तुमसे बहुत छोटी है और तुम्हे यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आएगी पर उस लड़की को सुरक्षा और मानसिक संबल की बहुत जरूरत है। एक पति से ज्यादा उसे संरक्षक चाहिए और तुमसे अच्छा सा ये काम और कौन कर सकता है। मेरी यह इच्छा पूरी करना वरना जानते हो मैं मरने के बाद तुम्हें भूत बनकर सताऊंगी ।
तुम्हारी और सिर्फ तुम्हारी
ज़िन्दगी

खत के अंत में उसने के स्माइली बनाया था। जिसे देख मैं रोते-रोते हंस पड़ा। अब आप ही बताइए भला कोई मरने वाला अपने खतमें स्माइली बनाता है। पर वह ऐसी ही थी।
उसके गए हुए 6 महीने हो गए। उसके लिखे डायरी मेरे जीवन का आधार है। मैं उसे अपने अंदर महसूस करता हूं। उसने मुझे जीना सिखाया। उसकी तरह आशावान और खुशमिजाज होने की कोशिश करता हूं। घर के कोने कोने में उसकी छाप को महसूस करता हूं। और कभी कभी गुनगुनाता हूं ‘तुझेमें हूं मैं और मुझ में है तू। ‘
“भैया। चाय बन गयी है। “
यह अन्विता की आवाज थी। वो कॉलेज से लौट आई थी। और हमेशा की तरह चाय बना कर मेरा इंतज़ार कर रही थी। हां मैं अन्विता को घर ले आया पर पति के रुप में नहीं भाई के रूप में। बस यही एक बात मैंने जिंदगी की पूरी तरह से नहीं मानी क्योंकि मेरी जिंदगी में उसकी जगह कोई और नहीं ले सकता।

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Susmita is a homemaker as well as a writer. She loves writing whatever comes in her mind either its about home affair or about social or political affairs. She believe sharing your opinion is a great power of human being which can make social changes and bring people together. She believe enjoying every sip of life.