parwarish 1
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आसान सी परवरिश

सुबह से ही घर में व्यस्तता की  लहर सी  मची थी | हो भी क्यूँ ना , आज मुझे लड़के वाले  जो देखने  आने वाले थे | कब समय बीता पता ही नहीं चला , सुबह से दोपहर हो गई और अंततः अतिथिगन पधारे | मुझे कमरे में भेजा गया तैयार होने के लिए , और बाकी घरवाले लग गए उनकी आवभगत में |

              कुछ देर बाद माँ मुझे लेने आई , मैं काफी डरी सहमी सी थी शायद ये दिन हर लड़की के जीवन में आता हैं , एक हाथ से माँ का हाथ पकड़े , दूसरे से साड़ी सँभालते हुए मैं चल पड़ी | कुछ कदम बाद मैं माँ से बोली मुझसे नहीं होगा, माँ बोली मत डरो ,डरने की कोई बात नहीं हम हैं तुम्हारे साथ | इस विस्वास की डोर  पकड़े मैं उपस्थित हुई सबके समक्ष , बड़ो को प्रणाम करने के बाद मैं एक जगह बैठ गई | तरह – तरह के सवाल पूछे गए , कुछ देर ये सिलसिला चला ,  फिर लड़के और लड़की को बात करने के लिए अलग से मौका दिया गया | दो कुर्सियां लगी हमे आमने सामने बैठाया गया घरवालों से थोड़ी दूरी पे |

(बातें शुरु हुई | )

लड़का – आपको मुझसे कुछ पूछना हैं तो पूछिये |

मैं – नहीं , आपको कुछ बताना हैं तो बताइए |

लड़का  –  अभी सबके सामने तो हम दोनों एक दूसरे के बारे में थोडा बहुत जान ही चुके हैं , वैसे मैं बताना चाहूँगा की मेरा परिवार मेरे लिए बहुत मायने रखता हैं |

मैं – जी |

लड़का –  मैं आज जो कुछ भी हूँ , अपनी माँ के बदौलत हूँ | मेरी माँ ने मुझे बड़े लाड़ प्यार से पाला हैं | आप तो लड़की हैं आपकी परवरिश  तो बहुत आसानी  से हो  गई होगी , घरवालों को ज्यादा जोखिम नहीं उठाना पड़ा होगा | पर मेरी माँ को बहुत मेहनत करना पड़ा मुझे सफल बनाने के लिए | और क्या बोलूं आप भी कुछ बोलिए मैं ही बोलता रहूँ |

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(उसके शब्द तीखे बाण की तरह चुभे मुझे , थोड़ी देर शांत रहने के बाद बोली )

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मैं –  आज मैं जीवित हूँ और सुरक्षित हूँ तो अपने  माँ और पापा के बदौलत | बस इतनी आसान सी थी मेरी परवरिश |

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