पितरो के उद्धार के लिए 6 सितंबर से शुरू होगा पितृ पक्ष
विश्वविख्यात गया कि प्रसिद्धि मुख्य रूप से एक धार्मिक नगरी के रूप में है। खासकर हिंदू तीर्थ यात्रियों के लिए काफी प्रसिद्ध है। गया को पितरों के उद्धार के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल माना गया है। इसे तीर्थों का प्राण कहा गया है, पौराणिक काल से ही इसकी महता प्रतिष्ठापित है, कथाओ मे कहा गया है कि सतयुग के पूर्व ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया, तब इसका श्रीगणेश गया के, ब्रह्मा योनि पर्वत से हुआ था। गया का विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला हर वर्ष भादो के शुक्ल पक्ष के अनंत चतुर्दशी के दिन से शुरू होता है। इस बार यह मेला 6 सितंबर से 20 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान गया में पूरे देश से ही नहीं विदेशों के तीर्थाटन करने वाले यात्री अपने पूर्वजों की श्राद्ध क्रिया करने यहां आते हैं। मुख्तयः तीन स्थानों फल्गु नदी के तट पर, विष्णुपद मंदिर में तथा अक्षयवट के नीचे संपन्न किया जाता है।
विष्णुपद मंदिर का निर्माण
विष्णुपद मंदिर वैष्णवों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक विशिष्ट स्थान रखता है। इसका निर्माण, इंदौर की महारानी अहिल्याबाई सन 1766 ईस्वी में जयपुर के प्रसिद्ध स्थापत्य कलाकारों को बुलाकर कराया था। इस विशाल अष्टभुजी मंदिर की ऊंचाई 100 फुट है। भगवान विष्णु के चरण चिन्ह के कारण ही इसका नाम विष्णुपद है। यह चरण चिन्ह 13 इंच लंबा है। धार्मिक मान्यता है कि इसी स्थल पर भगवान विष्णु के साक्षात रुप में प्रकट हुए और गयासुर नामक के असुर का नाश किया था। मंदिर भुरे चट्टानी पत्थरों में निर्मित है, जो जिला मुख्यालय गया से 35 किलोमीटर उत्तर-पूर्व के कोण पर पत्थरकट्टी की पहाड़ी खदानों से निकले भूरे ग्रेनाइट पत्थरों से मंदिर का निर्माण कराया गया। अतः सलिला फल्गु नदी के पूर्वी तट पर बने इस मंदिर की भव्यता दूर से ही दृष्टिगोचर होने लगती है।
विष्णुपद मंदिर के बहुत निकट ही फल्गु की ओर से मंदिर में प्रवेश करते ही एक दूसरा प्रांगण मिलता है, जिसमें भगवान विष्णु के गदाधर रूप में युक्त चट्टानों पर बना हुआ। एक छोटा मंदिर है द्वार के निकट वाले रास्ते पर दो हाथियों पर अवलंबित एक सिंहासन पर द्वंद की एक सुंदर मूर्ति अवस्थित है। उत्तरी फाटक से जाने पर दायी और महिषासुर का वध सती हुई सूरी देवी की एक प्रतिमा है।