मानव
मानव हूँ मैं,कृति भगवान की..
मुझे स्थिरता प्रदान करो
जैसा भी हूँ मैं,मुझे स्वीकार करो..
रंग रूप संसार के,समाहित करूँ कैसे
जितनी रिक्तियाँ थीं,भर दीं
अब और रिक्तियाँ लाऊँ कहाँ से??
शब्दों की साजिश से
बनती और बिगड़ती है दुनिया,
शब्दों को सँभालो तो सँवर जाती है दुनिया..
शब्दों के फेर में उलझाया न करो
मानव हूँ मैं,कृति भगवान की
मुझे स्थिरता प्रदान करो
जैसा भी हूँ मैं,मुझे स्वीकार करो…
हूबहू नहीं बन सकता मैं,
इतनी बंदिश न दो
कठोरता की चाह में ,
मुझे कष्ट न दो.
डर गया था बहुत,
अब कहता हूँ मैं
डर के आगे जीत है,
ये तो मानता हूँ मैं.
शब्दों के बोझ को ढोया न करो,
मानव हूँ मैं,कृति भगवान की
मुझे स्थिरता प्रदान करो
जैसा भी हूँ मैं, मुझे स्वीकार करो…
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