उसके गोद में सर रख मैं लेटा था।।
वो प्यार में मशगूल थी शायद ,उसकी उंगलियां मेरे बालो में हरकतें कर रही थी कुछ ।।
और मै बेवकूफ़ कुछ रंगों के ख्यालों में खोया हुआ था ,
हमारे सामने से , लोग गुज़रे बहुत सारे लोग , सभी केशरिया थे, पर हमे कोई फर्क नहीं पड़ता किसी भी रंग के साये से,
क्यूंकि हम दोनों तो जब भी साथ होते हम लाल रंग के हो जाते।।
मेरे आस पास के मेरे गाँव के लोग सभी केशरिया ही है, उन सभी की भीड़ में मैं अकेला सफेद रंग का हूँ।।
जिसकी गोद मुझें अक्शर सफ़ेद से लाल कर दिया करती है, असल में वो तो हरे रंग की है ।।
क्या हुआ अगर उसके पुरखों के तालुकात नवाबों से थे , मैं भी तो मठ स्वामी की गोद मे खेल कर बड़ा हुआ हूँ।।
मेरे लोगो को शायद डर इस बात का है कि कहीं मै सफ़ेद से हरे को प्यारा ना हो जाऊं ।।
मगर उन्हें समझना पड़ेगा कि मै तो कई दिनों पहले ही लाल हो चुका हूँ।।
कुछ कमी है शायद इन रंगों में या लोगो के ख्यालो में,
ऊपर मेरे लोग केशरिया बीच में चक्र सी वो और उसके गोद में लेटा मैं सफ़ेद रंग का और नीचे उसके लोग हरे रंग के ।।।।