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कही आपके स्मार्टफोन में यूआईडीएआई का नंबर ऐड तो नहीं?

नई दिल्ली: भारत के कई स्मार्टफोन्स यूजर्स को शुक्रवार सुबह फोन बुक में आधार जारी करने वाली यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) का टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर नजर आने लगा था। इस पर अथॉरिटी ने कहा कि यह नंबर (1800-300-1947) गलत और आउटडेटेड है। स्मार्टफोन्स में इसे सेव कराने के लिए उसने किसी फोन निर्माता या मोबाइल ऑपरेटर कंपनी की सेवा नहीं ली। हमारा टोल फ्री नंबर 1947 है, जो पिछले दो साल से काम कर रहा है। देर रात जाकर गूगल ने अपनी गलती मान ली। कहा- एंड्रायड आॅपरेटिंग सिस्टम ये नंबर हटाना भूल गए थे।

स्मार्टफोन्स की फोन बुक में आधार का हेल्पलाइन नंबर नजर आने पर गूगल ने गलती मानी, कहा- हटाना भूल गए थे

गूगल ने कहा, “2014 में हमने एंड्रायड आॅपरेटिंग सिस्टम के रिलीज में दो नंबर एड किए थे। उन दो नंबर में से एक ये भी है। संभवत: तभी से ये यूजर्स के फोन में बना हुआ है। हमें इसका बेहद खेद है। एंड्रायड के अपडेट वर्जन में हम इसे डिलीट कर देंगे। यूजर्स चाहें तो इस नंंबर को अपने मोबाइल फोन से डिलीट कर सकते हैं।

दिक्कत सभी स्मार्टफोन्स के साथ नहीं

आधार का नंबर अचानक सेव होने की दिक्कत सभी स्मार्टफोन्स के साथ नहीं है। माना जा रहा है कि जिन स्मार्टफोन्स में यह हेल्पलाइन नंबर नजर आ रहा है, उनमें से ज्यादातर ऐसे हैं, जिनकी फोन बुक गूगल से सिंक है। वहीं, कुछ यूजर्स का यह भी कहना है कि जिस तरह मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स से मिली नई सिम फोन में इंस्टॉल करते वक्त कुछ नंबर प्री-लोडेड होते हैं, आधार का हेल्पलाइन नंबर भी उसी तरह फोन बुक में सेव हुआ है।

जोखिम क्या हैं

फ्री इंटरनेट और डिजिटल राइट्स के लिए काम करने वाली संस्था एक्सेस नाउ में साउथ एशिया पब्लिक पॉलिसी के फैलो आकाश सिंह बताते हैं- लोगों की मोबाइल फोन बुक तक अगर कोई पहुंच सकता है तो इससे लोगों की प्रोफाइलिंग की जा सकती है और उन्हें ट्रैक किया जा सकता है। सिर्फ नंबर सेव होने से ही कोई भी कंपनी या सरकार लोगों की लोकेशन, उनकी एक्टिविटी, पसंद-नापसंद, सामाजिक स्तर, विचारधारा, सेक्शुअल ओरिएंटेशन, बीमारी, दोस्त-दुश्मन, जाति, धर्म जैसी व्यक्तिगत और सेंसेटिव जानकारी हासिल कर सकती है। डेटा दो तरह के होते हैं। पहला- व्यक्तिगत डेटा, जिसमें लोगों की सामान्य जानकारी जैसे उनकी लोकेशन, उनकी एक्टिविटी शामिल है। दूसरा- सेंसेटिव डेटा, जिसमें उन्हें क्या बीमारी है, उनका डीएनए क्या है, उनकी जाति क्या है? जैसी जानकारी शामिल होती है। इस प्राइवेसी को खतरा हो सकता है।

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SOURCEदैनिक भास्कर
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