देश के 12 प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में से एक है पटना का उलार सूर्य मंदिर
देश के 12 प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में शामिल है पटना जिले का उलार सूर्य मंदिर. भगवान भास्कर की पवित्र नगरी उलार दुल्हिनबाजार प्रखंड मुख्यालय से पांच किलोमीटर दक्षिण एसएच 2 मुख्यालय पथ पर स्थित है.
देश के 12 आर्क स्थलों में कोणार्क और देवार्क (बिहार का देव) के बाद उलार (उलार्क) भगवान भास्कर की सबसे बड़े तीसरे सूर्य आर्क स्थल के रूप में जाना जाता है.
जानकारी के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ऋषि मुनियों के श्राप से कुष्ठ रोग से पीड़ित थे. देवताओं के सलाह पर उलार के तालाब में स्नान कर सवा महीने तक सूर्य की उपासना की थी. इससे वह कुष्ठ रोग से मुक्त हो गये थे. प्रत्येक रविवार को काफी संख्या में पीड़ित लोग स्नान कर सूर्य को जल व दूध अर्पित करते हैं.
लोक कथाओं और किवदंतियों में कई राजा-महाराजाओं द्वारा मंदिर में सूर्य उपासना कर मन्नत मांगने के बाद संतान प्राप्ति का जिक्र है. चैती हो कार्तिक, दोनों छठ पर यहां लाखों की भीड़ जुटती है. कहा गया है कि सच्चे मन से जो नि:संतान सूर्य की उपासना करते हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है. पुत्र प्राप्ति के बाद मां द्वारा आंचल में पुत्र के साथ नटुआ व जाट-जटिन के नृत्य करवाने की भी परंपरा है.
यह है प्रचलित कथा
कथा प्रचलित है कि श्रीकृष्ण के पुत्र शांब सुबह की बेला में स्नान कर रहे थे, तभी गंगाचार्य ऋषि की नजर उन पर पड़ गयी. यह देख ऋषि आग बबूला हो गये और शांब को कुष्ठ से पीड़ित होने का श्राप दे दिया.
तब नारद जी ने श्राप से मुक्ति के लिए उन्हें 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर की स्थापना कर सूर्य की उपासना का उपाय बताया.
इसके बाद शांब ने उलार्क (अब उलार), लोलार्क, औंगार्क, देवार्क, कोर्णाक समेत 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर बनवाया. इसके बाद उन्हें श्राप से मुक्ति मिली. बाद में उलार मंदिर को भी मुस्लिम शासकों ने ध्वस्त कर दिया. फिर 1950-54 में संत अलबेला बाबा ने जन सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. उस समय खुदाई में काले पत्थर की पालकालीन खंडित मूर्तियां भी मिलीं. बाद में इन खंडित मूर्तियों की भी पूजा होने लगी.
भारतीय इतिहास के अनुसार मुगल शासक औरंगजेब ने इस स्थान पर बने मंदिर को तोड़वा दिया था. पर भक्तगण जीर्णशीर्ण मंदिर के ऊपर लगे पीपल के पेड़ व जंगलरूपी स्थान में भगवान सूर्य की प्रतिमा की पूजा करते रहे. अचानक 1948 में पहुंचे संत सद्गुरु अलबेला बाबा जी महाराज ने कठिया बाबा के बगीचा में रहने वाले एक संत नारायण दास उर्फ सुखलु दास के आग्रह पर पीपल के पेड़ की पूजा-अर्चना की.
इसके प्रभाव से पीपल का पेड़ सूख गया. उसके बाद अलबेलाजी महाराज ने स्थानीय लोगों व भक्तों के सहयोग से इस स्थान पर सूर्य मंदिर का निर्माण कराया. लोगों का मानना है कि मंदिर के पास बने चमत्कारी सरोवर में स्नान करने से थकावट दूर हो जाती है व चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है. इसके जल व आस पास के मिट्टी की जांच के उपरांत गंधक की मौजूदगी पायी गयी है.
वहीं, मंदिर के महंत व पुजारी अवध बिहारी दासजी महाराज ने बताया की प्रत्येक रविवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर सरोवर में स्नान कर मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य को दूध से अभिषेक कराते हैं.
वहीं, उन्होंने बताया कि छठ पूजा के अवसर पर राज्य व देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये श्रद्धालुओं की भीड़ से मंदिर परिसर मानव जमघट में तब्दील हो जाती है. श्रद्धालुओं व व्रतियों की सुविधाओं के लिए पूर्व में मंदिर पूजा कमेटी की ओर से ही सभी व्यवस्था की जाती थी, लेकिन वर्ष 2016 में छठ पूजा की व्यवस्था का जायजा लेने पहुंचे पटना जिला विकास आयुक्त अमरेंद्र कुमार ने बिहार सरकार की ओर से पांच लाख की राशि उपलब्ध करायी थी. तब से कार्तिक छठ के अवसर पर आयोजित होने वाले उलार महोत्सव के संचालन के लिए सरकार की ओर से भी आर्थिक सहयोग किया जा रहा है, साथ ही इस मंदिर को राष्ट्रीय पंचांग से भी जोड़ दिया गया है.