उपेक्षा का शिकार एक खूबसूरत पर्यटन स्थल
बिहार में प्राचीन मंदिरों और धार्मिक स्थलों की भरमार है। यहां हिन्दू,बौद्ध,जैन और सिक्ख लगभग सभी धर्मों के पूजा स्थल हैं। इनमें से कुछ देश ही नहीं विदेशों तक प्रसिद्ध है। दूर दूर से लोग वहां भ्रमण के लिए आते है। पर कुछ ऐसे भी धरोहर है जो प्राचीन और खूबसूरत होते हुए भी उपेक्षा का शिकार है और कम ही लोग उनके बारे में जानते है।
ऐसे ही धरोहरों में से एक है औरंगाबाद के मदनपुरा जिला मुख्यालय से लगभग 27 किलोमीटर की दुरी पर स्थित उमगा पहाड़ी की मंदिर श्रंखला। यह पहाड़ी ग्रैण्ड ट्रंक रोड से 1.5 कि.मी. दक्षिण की ओर एवं देव{औरंगाबाद} से 12 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जमीन से करीब डेढ़ सौ फीट ऊँचे पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का दर्शन करने काफी पर्यटक आते हैं।
अत्यंत प्राचीन
उमगा पहाड़ी के मंदिर बिहार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहरों में से एक है। 19वीं एवं 20वीं शताब्दी के प्रायः सभी नामचिन पुरातत्ववेताओं ने यहॉ के मंदिर श्रृंखलाओ का सर्वेक्षण किया तथा उसे अपने सर्वेक्षण प्रतिवेदन में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। मेजर किट्टो ने सन् 1847 में,श्री कनिंघम ने 1876 में , जे0डी0 बेगलर ने1872 में और ब्लॉच ने 1902 ई0 में इसका पुरातात्विक सर्वेक्षण किया तथा इसे अपने सर्वेक्षण प्रतिवेदनों में महत्वपूर्ण स्थान दिया।
इन मंदिरो का निर्माण 1496 ई. पूर्व में कराया गया है। मंदिर के शिलालेख से पता चलता है कि पहले यह जगन्नाथ मंदिर था। 1496 ई. में सूर्य वंशीय राजा भैरवेंद्र ने मंदिर के गर्भगृह में बलराम और सुभद्रा की प्रतिमा स्थापित की थी । बाद में यह प्रतिमा समाप्त हो गई। प्रतिमा के समाप्त होने के बाद भगवान सूर्य की प्रतिमा स्थापित हुई तब से यह मंदिर सूर्य मंदिर के नाम से विख्यात हुआ। इस मंदिर की वास्तुकला अपने आप में एक दम अलग है, क्योंकि यह देव में स्थित सूर्य मंदिर के समान दिखता है।
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प्राचीन मंदिरो की श्रंखला
मंदिर कमिटी के अध्यक्ष बालमुकुंद पाठक के अनुसार उमगा पहाड़ पर 52 देवी देवताओं के मंदिर थे जो संरक्षण के अभाव में नष्ट हो गए। आज उनके केवल अवशेष दिखते है। मुख्य मंदिर के अतिरिक्त उमगा पहाड पर कई मंदिर है जिनमें प्रमुख सहस्त्र शिवलिंग एवं ध्वंस शिवमंदिर है। पहाडी पर कई मंदिर एवं मंदिरों के अवशेष मिलाकर मंदिर ऋखला है इसकी पश्चिमी ढलान पर पूर्वाभिमुख वृहद मंदिर है जो देव मंदिर के ही समरूप है गर्भगृह के अतिरिक्त यहॉ मण्डप है जो सुडौल एकाश्मक स्तम्भों के सहारे है मंदिर में प्रवेश करने के बाद द्वार के बांयी तरफ एक शिवलिंग एवं भगवान गणेश की मूर्ति है गर्भगृह में भगवान सूर्य की मूर्ति है मंदिर के दाहिने तरफ एक वृहद शिलालेख है सभी मूर्तियां एवं शिलालेख काले पत्थर से बने है जो पालकालीन मूर्ति कला के उत्कृष्ट नमूने है।
मेलो और महोत्सव का आयोजन
प्रत्येक वर्ष इस मंदिर को देखने एवं भगवान सूर्य का दर्शन करने तीन से चार लाख श्रद्धालु आते हैं। माघ बसंतपंचमी के दिन यहां विशाल मेला लगता है। 1 जनवरी को पिकनिक मनाने का यह रमनिक जगह है। मंदिर की महिमा एवं गरिमा को प्रचारित करने के लिए प्रत्येक वर्ष उमगा महोत्सव मनाया जाता है।
सरंक्षण के अभाव में खतरें में अस्तित्व
मंदिर पर्यटक एवं श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। देखरेख के अभाव में मंदिर पर घास उग आया है। पत्थरों को तरासकर बनाये गये मंदिर में दरार उभर आये है। मंदिर के दक्षिणी एवं उतरी भाग में दरार साफ दिखता है। दिन प्रतिदिन पत्थरों के बीच के दरार बढ़ते जा रहे है। यहां लगभग 52 मंदिर हुआ करते जो सरंक्षण के अभाव में नष्ट प्रायः है और उनके केवल अवशेष बचे है।
हाल ही में मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने यहां का दौरा किया जिससे इसके विकास की उम्मीद जगी है। मुख्यमंत्री यहां के प्राकृतिक सौंदर्य और स्थापत्य कला से बहुत प्रभावित हुए और यहां के पर्यटन के विकास की संभावना को स्वीकार करते उन्होंने इसके विकास का आश्वासन भी दिया है।
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