वर्ष 2022 विधानसभा चुनाव में कुर्मी, कोइरी, राजभर, प्रजापति, पाल, अर्कवंशी, चौहान, बिंद, निषाद, लोहार जातियां सत्ता की चाभी की भूमिका में नजर आएंगी। इनकी महत्ता को भांपते हुए सभी प्रमुख दल इन जातियों को साधने में जुटे हैं। 32 फीसदी वोट का मालिकाना हक रखने वाली इन जातियों को साधने की रेस में भाजपा और सपा अन्य दलों से आगे हैं। भाजपा इनकी ताकत को अपने से जोड़े रखने की मुहिम में है जबकि सपा इन्हें फिर से जोड़ने की कोशिश में जुटी है।

वैसे ये जातियां हैं जो किसी एक दल से बंधकर नहीं रही हैं। चुनाव दर चुनाव इनकी पसंद बदलती रही है। इनकी गोलबंदी चुनाव में जिसकी तरफ होती है वह सत्ता में आते हैं। यही कारण है कि इनके क्षत्रपों और राजनीतिक दलों को साधने की सीधी होड़ भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस जैसे बड़े दलों में लगी है।

2014 से ये जातियां हैं भाजपा के पक्ष में 

वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव से कुर्मी, कोइरी, राजभर, प्रजापति, लोहार, निषाद आदि जातियां भाजपा के साथ गोलबंद हुई थीं। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव में भी ये जातियां भाजपा के साथ थीं, जिसकी बदौलत भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई। इन जातियों के खिसकने से ही पहले बसपा और फिर सपा का राज्य की सत्ता से सफाया हुआ था। मझवारा बिरादरी को साथ जोड़ने में जुटे डा. संजय निषाद अभी तक तो भाजपा के साथ खड़े हैं। कुर्मी वोटों की राजनीति करने वाली केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (एस) भी भाजपा के साथ हैं।

राजभर व कुशवाहा किधर होंगे, तय नहीं

2019 लोकसभा चुनाव में राजभर बिरादरी का वोट कुछ हद तक भाजपा से कटा था। सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने लोकसभा की सीटों पर प्रत्याशी उतार कर इस बिरादरी के वोट को अपने पक्ष में किया था। राजभर के गठबंधन के साथ बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी के आने से कुशवाहा बिरादरी भी कुछ हद तक उनके पक्ष में जा सकती हैं। अब राजभर ने 10 छोटे दलों को जोड़ कर भागीदारी संकल्प मोर्चा बना रखा है।

ये ओबीसी जातियां भी हैं छिपी ताकत

ओबीसी में ही शामिल बंजारा, बारी, बियार, नट, कुजड़ा, नायक, कहार, गोंड, सविता, धीवर, आरख जैसी बहुत कम आबादी वाली जातियों की गोलबंदी भी चुनावी नतीजों को प्रभावित करेगी। यह वह जातियां हैं जिन्हें पिछड़ों में कुछ बड़ी आबादी वाली जातियां अपनी उपजातियां भी बताती हैं। इनकी आबादी आधा फीसदी से लेकर डेढ़ फीसदी के बीच है।

पिछले चुनावों में थे इन दलों के साथ

बसपा :-वर्ष 2007 में जब मायावती सस्ता में आईं। उस चुनाव में बाबू सिंह कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचल राजभर, सुखदेव राजभर के साथ ही पटेल, चौहान आदि बिरादरियों के तमाम मजबूत नेता उनके साथ थे। ब्राम्हण व क्षत्रित समाज के भी तमाम बड़े नेता उस समय बसपा के साथ थे।
सपा :-वर्ष 2012 में अखिलेश जब सत्ता में आए उस समय उनके साथ भी इन बिरादरियों के तमाम बड़े नेता जुड़े थे। पटेल, चौहान, कुशवाहा आदि बिरादरियों के बड़े नेता सपा के साथ खड़े हो गए थे।

जातियां—वोट फीसदी
कुर्मी— 5.0 फीसदी
राजभर–4.0 फीसदी
कुशवाहा (कोइरी)–4.6 फीसदी
प्रजापति–3.9 फीसदी
पाल—-3.7 फीसदी
निषाद—4.0 फीसदी (मझवारा की अन्य जातियों को जोड़े दें तो निषाद समाज का वोट फीसदी 10.25 हो जाएगा।)
विश्वकर्मा (लोहार)–3.3 फीसदी
चौहान—-2.2 फीसदी
बिंद—-1.9 फीसदी
अर्कवंशी—1.9 फीसदी
(नोट:- जातियों का यह वोट फीसदी राजनीति दलों के मुताबिक है। इसका आधार 2001 में गठित सामाजिक न्याय समिति तथा उससे पूर्व के अन्य आंकड़ों को बताया जा रहा है।)

 

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