चर्चाओं में रहता है मंदार पर्वत से सटा ऐतिहासिक गुरुधाम आश्रम, जानिए क्यों?
योग क्रिया को लेकर बिहार के बौंसी(बांका) का गुरुधाम आश्रम हमेशा चर्चाओं में रहा है। पौराणिक रूप से महत्वपूर्ण मंदार पर्वत से सटे गुरुधाम आश्रम को योग प्रवर्तक भूपेन्द्र नाथ सान्याल ने बसाया था।
मूल रूप से पश्चिम बंगाल के नदियामा जिले के निवासी योगाचार्य सान्याल बाबा ने 1927 में इस आश्रम की नींव रखी थी। आश्रम का निर्माण कार्य 1940 से प्रारंभ हुआ जो 1944 में बनकर तैयार हुआ। वे इस आश्रम में आने से पूर्व शांति निकेतन में गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर के समकालीन थे। इस आश्रम में क्रिया योग (ब्रह्म दीक्षा) शिष्यों को दी जाती थी, यह आज भी जारी है। उन्होंने क्रिया योग की दीक्षा अपने परमगुरुदेव योगीराज श्यामाचरण लाहिड़ी से प्राप्त किया था।
विलुप्त हो गया योग
योगाचार्य के शिष्यों के मुताबिक क्रिया योग पृथ्वी पर से भगवान श्रीकृष्ण के बाद विलुप्त हो गया था। उनके बाद परम गुरुदेव श्री श्यामाचरण लाहिड़ी ने ही इसे जन-जन तक पहुंचाया। इसलिए क्रिया योग की पुर्नस्थापना के लिए श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय ने दीक्षा दान दी। सूक्ष्म रूप में आज भी विद्यमान है। गुरुधाम से जुडे़ उनके अनुयायी डॉ. गंगाधर मिश्र के मुताबिक उनके गुरु श्री आचार्य भूपेन्द्र नाथ सान्याल ने मंदार की पावन भूमि को इसलिए अपना तपस्थली बनाया क्योंकि परम गुरुदेव श्री श्यामाचरण लाहिड़ी ने अपने साधना के क्रम में मंदार पर्वत का दर्शन हुआ था। जिसमें सात सतहों का दर्शन गुरु महाराज ने किया। उन्हें सातवें सतह में मंदार का दर्शन हुआ था। इसी उदेश्य से मंदार की तराई में बसे गुरुधाम को उन्होंने अपना आश्रम बनाया।
विदेशों में भी फैला योग क्रिया
गुरुधाम में हजारों लोगों को क्रिया योग की दीक्षा दी गयी और देखते ही देखते उनके अनुयायी देश भर में और फिर विदेशों में भी फैल गये। इस आश्रम का उदेश्य यह है कि आने वाले पीढ़ियों को सदा मार्ग दर्शन मिलता रहे और शांति, प्रेम और आनंद प्राप्त हो। गुरुधाम आश्रम से सटे इसकी एक और शाखा है जहां पर श्यामाचरण वेद विद्यापीठ की स्थापना की गयी है। वेद की चारों शाखाओं की पढ़ाई होती है। यहां से अध्यन कर छात्र देश-विदेश में वेद की शिक्षा का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।
साल में दो बार होता है आयोजन
इस आश्रम में साल में दो बार बड़े आयोजन होते हैं पांच दिनों तक चलने वाला वसंतोत्सव यहां का मुख्य आयोजन है जो माघशुक्ल षष्ठी से प्रारंभ होकर दसवीं तक चलता है जिसमें गुरुभाई बहन का मिलन होता है। पांच दिनों तक विविध प्रकार के धार्मिक आयोजन होते हैं जबकि दूसरा आयोजन आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को होता है जिसे गुरु पूर्णिमोत्सव कहा जाता है।