डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह ने गुरुवार को पीएमसीएच में अंतिम सांस ली

Vashishtha Narayan Singh is no more

डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह ने गुरुवार को पीएमसीएच में अंतिम सांस ली

जानेमाने गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह ने गुरुवार को पीएमसीएच में अंतिम सांस ली। आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती देने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह की योग्यता का डंका देशदुनिया में बजा। भोजपुर जिले के वसंतपुर गांव से शुरू हुआ सफर नासा तक पहुंचा। लेकिन, उनके जवानी में ही हुई सीजोफ्रेनिया नामक बीमारी के कारण पिछले दो दशक से वह गुमनामी में जी रहे थे।

आइंस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह ने आइंस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी। आइंस्टिन के सिद्धांत E=MC2 को चैलेंज किया था उन्होंने मैथ में रेयरेस्ट जीनियस कहा जाने वाला गौस की थ्योरी को भी उन्होंने चैलेंज किया था। यहीं से उनकी प्रतिभा का लोहा दुनिया ने मानना शुरू किया था।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने प्रतिभा को पहचाना

वशिष्ठ ने नेतरहाट विद्यालय से मैट्रिक किया। वह संयुक्त बिहार में टॉपर रहे थे। वशिष्ठ जब पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते थे, तब कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी। कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और 1965 में वशिष्ठ को अपने साथ अमेरिका ले गए। 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बने। इसी दौरान उन्होंने नासा में भी काम किया, लेकिन मन नहीं लगा और 1971 में भारत लौट आए। उन्होंने आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुंबई, और आईएसआई कोलकाता में काम किया।

मानसिक बीमारी से जूझ रहे थे वशिष्ठ नारायण

डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह पिछले 44 साल से सीजोफ्रेनिया (मानसिक बीमारी) से जूझ रहे थे। जब वे नासा में काम करते थे तब अपोलो (अंतरिक्ष यान) की लॉन्चिंग से पहले 31 कम्प्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए। इस दौरान उन्होंने पेन और पेंसिल से ही कैलकुलेशन करना शुरू किया। जब कम्प्यूटर ठीक हुआ तो उनका और कम्प्यूटर्स का कैलकुलेशन बराबर था।

शादी के बाद बीमारी के बारे में चला पता

1973 में वशिष्ठ नारायण की शादी वंदना रानी सिंह से हुई थी। तब उनके असामान्य व्यवहार के बारे में लोगों को पता चला। छोटी-छोटी बातों पर काफी गुस्सा करना, कमरा बंद कर दिनभर पढ़ते रहना, रात भर जागना, उनके व्यवहार में शामिल था। उनके इस व्यवहार के चलते उनकी पत्नी ने जल्द ही उनसे तलाक ले लिया। 1974 में उन्हें पहला दिल का दौरा पड़ा था। 1987 में वशिष्ठ नारायण अपने गांव लौट गए थे।

1989 में हो गए गायब

अगस्त 1989 को रांची में इलाज कराकर उनके भाई उन्हें ले जा रहे थे। रास्ते में खंडवा रेलवे स्टेशन पर उतर गए और भीड़ में कहीं खो गए। करीब पांच साल तक गुमनाम रहने के बाद उनके गांव के लोगों को वह छपरा में मिले। इसके बाद राज्य सरकार ने उनकी सुध ली। उन्हें विमहांस बेंगलुरु इलाज के लिए भेजा गया। जहां मार्च 1993 से जून 1997 तक इलाज चला। इसके बाद से वे गांव में ही रह रहे थे।

तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री शत्रुध्न सिन्हा ने इस बीच उनकी सुध ली थी। स्थिति ठीक नहीं होने पर उन्हे 4 सितंबर 2002 को मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया। करीब एक साल दो महीने उनका इलाज चला। स्वास्थ्य में लाभ देखते हुए उन्हें यहां से छुट्टी दे दी गई थी।

Facebook Comments
Previous articleमहान सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित होगा सोनपुर मेला: सुशील मोदी
Next articleबिहार में न्यूरो-रिहैबिलिटेशन सेंटरों में सहायक प्रौद्योगिकी स्थापित करने के लिए बैठक का आयोजन
The Team TBN represents the author of posts, which are received by different sources & agencies. The Bihar News does not endorse the personal point of view of any such representative.