2पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
ककोलत झरने से जुड़ी पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं भी हैं। मान्यता है त्रेता युग में एक राजा किसी ऋषि के श्राप से अजगर बन कर इस जगह निवास करता था। ककोलत में ही निवास करने वाले ऋषि मार्कंडेय के कहने पर इस जल प्रपात में स्नान करने से उसे अजगर योनि से मुक्ति मिली। तभी से कहा जाता है की वैशाखी के अवसर पर इस प्रपात में स्नान करने से सांप योनि में जन्म लेने से प्राणी मुक्त हो जाता है। यह भी कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी यहां कुछ दिनों तक निवास किया।
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1811 में अंग्रेजी शासनकाल में फ्रांसिस बुकानन ने इस जल प्रपात का अवलोकन कर बताया कि इसके नीचे का तालाब काफी गहरा है. इस तालाब में सैकड़ों लोगों की जाने गई। 1994 में इस तालाब को भर दिया गया तब से इसका आकर्षण और बढ़ गया। प्रतिवर्ष 14 अप्रैल को वैशाखी के अवसर पर यहां विषुवा मेले का आयोजन होता है। ककोलत विकास परिषद की ओर से काकोलत महोत्सव का आयोजन भी होता है। इस जलप्रपात की ऐतिहासिक महत्ता को देखते हुए डाक व तार विभाग ने ककोलत जलप्रपात पर 5 रुपए मूल्य का डाक टिकट भी 2003 में जारी किया।