Womens day  special : महिला सशक्तिकरण पर बनी ये 11 फिल्मे अवश्य देखे

अक्‍सर ये देखा गया है कि मुख्य सिनेमा में महिलाओं के पात्र महज मसाले के तौर पर होते हैं। लेकिन कुछ ऐसी फिल्में रहीं है , जिनमें महिलाओं को अपना हाल-ए-दिल बयां करने का मौका मिला। और जब ये मौका मिला तो उन्‍होंने साबित किया कि वो किसी से कम नहीं हैं। इन फिल्मो की नायिकाओं ने अपने अभिनय से इन फिल्मो को एक नया आयाम भी दिया और औरतों के दर्द को सशक्त तरीके से प्रस्तुत किया।इन फिल्मो ने ये दिखने की कोशिश की की नारी अबला नहीं सबला है।  आइये जानते है उन फिल्मो को :-

1 . मदर इंडिया

१९५७ में बनी भारतीय फ़िल्म है जिसे महबूब ख़ान द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया है। फ़िल्म में नर्गिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार और राज कुमार मुख्य भूमिका में हैं। फ़िल्म महबूब ख़ान द्वारा निर्मित औरत (१९४०) का रीमेक है। यह गरीबी से पीड़ित गाँव में रहने वाली औरत राधा की कहानी है जो कई मुश्किलों का सामना करते हुए अपने बच्चों का पालन शोषण करती है। उसकी त्याग,मेहनत और लगन से वह एक देवी-स्वरूप उदाहरण पेश करती है व भारतीय नारी की परिभाषा स्थापित करती है। कहानी का अंत अत्यंत कारुणिक है जब वो अपने गुण्डे बेटे को स्वयं मार देती है। वह आज़ादी के बाद के भारत को सबके सामने रखती है।

2 . सुजाता

इस फिल्म में नूतन का अभिनय फील्म को नई ऊँचाइयों तक ले गया। कहानी जाति व्यवस्था पर प्रहार करती है।  यह फ़िल्म भारत में प्रचलित छुआछूत की कुप्रथा को उजागर करती है। इस फ़िल्म की कहानी एक ब्राह्मण पुरुष और एक अछूत कन्या के प्रेम की कहानी है किस तरह से जातीय भेदभाव के चलते उनकी मोहब्बत को जिल्लतें सहनी पड़ती है फिल्म में इसका भाव-पूर्ण प्रस्तुतीकरण है।

  1. अर्थ

 इस फिल्म में स्मिता पाटिल और शबाना आज़मी का अभिनय उत्कृष्ट है। फिल्म विवाहेतर सम्बन्धो के बारे में है।  1982 में बनी ये फिल्म अपने विषय के कारण काफी चर्चा में रही थी। इसके गाने काफी कर्णप्रिय हैं। कहानी काफी दिलचस्प है। महेश भट्ट का निर्देशन उम्दा है।

  1. मिर्च -मसाला

 इसमें स्मिता पाटिल की एक्टिंग लाजवाब थी।फिल्म का क्लाईमेक्स काफी दिल दहला देने वाला है। इसमें नारी के एक ऐसे रूप को दिखाया है जो अमूमन समाज से छुपा-सा रहा है। अपनी मान मर्यादा की रक्षा के लिए उसके संघर्ष को दिखाया गया है।

 5 . अस्तित्व

 इस फिल्‍म में तब्‍बू ने शानदार अभिनय किया था।यह फिल्म औरत के अस्तित्व और पहचान के मुद्दे को लेकर बनाई गई। हमारे समाज में औरत के शारीरिक जरूरतों पर चर्चा करने का रिवाज़ नहीं रहा है। पुरुष अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वतंत्र है और उसे चरित्रहीन का ठप्पा लगाने का भी डर नहीं होता पर अगर पति पास न हो तो औरत अपनी ये जरुरत किससे पूरी करे। इस मुद्दे को बड़े ही रोचक ढंग से निर्देशक महेश मांजरेकर ने प्रस्तुत किया है।

6 . लज्जा

  तस्‍लीमा नसरीन के उपन्‍यास पर बनी इस फिल्‍म में कई ज्‍वलंत मुद्दों को उठाया गया। इस फिल्‍म में बॉलीवुड की कई बड़ी अभिनेत्रियों ने साथ काम किया। माधुरी दीक्षित (जानकी), ने रंगमंच की कलाकार की भूमिका निभाई जो पुरुष दोगलेपन को स्वीकार करने से इंकार कर देती है। रेखा ने ग्रामीण महिला का किरदार निभाया जो स्‍त्री अधिकारों को लेकर काफी सजग होती है। लज्‍जा में लैंगिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई गई थी।

7 . डोर

 वह लड़की जो कम उम्र में ही विधवा हो जाती है और उसे किस तरह अपनी जिंदगी बितानी पड़ती है, इसे फिल्म में अभिनेत्री आयशा टाकिया  ने बखूबी जिया। सामाजिक बंधनों से जूझता एक युवा हृदय, उसकी उमंगे और सारी कशमकशों के बीच इस फिल्‍म की कहानी रची गयी। नागेश कुक नूर की यह फिल्म दो महिलाओं के जीवन पर आधारित है।

8 . फैशन

 

फिल्म 2008 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म को देखने के बाद फैशन की दुनिया की असलियत के बारे में पता चलता है। मधुर भंडारकर ने इसे डायरेक्ट किया था।इस फिल्म में मॉडलिंग की दुनिया में पहले से स्थापित और स्थापित होने के लिए संघर्षरत दो मॉडलों की कहानी दिखाई  गयी है। प्रियंका और कंगना दोनों का अभिनय लाजवाब है।

9 .इंग्लिश विंग्लिश

फिल्म एक ऐसी समस्या विशेषकर जिसका सामना घरेलू महिलाऐ कराती है ,पर बनाया गया जो अब तक नज़र अंदाज़ रहा है। इंग्लिश विंग्लिश शशि (श्री देवी) नामक महिला की कहानी है जिसे अंग्रेजी नही आती है। जिसके कारण उसकी बारह वर्ष की लड़की पैरेंट्स-टीचर मीटिंग में अपनी मां को ले जाने में शर्मिंदगी महसूस करती है। घर पर बच्चे और पति अक्सर उसका मजाक बनाते है क्योंकि अंग्रेजी शब्दों का वह गलत उच्चारण करती है। लेकिन शशि न्‍यूयार्क में अपनी बहन के घर रहकर अंग्रेजी की कोचिंग क्‍लासेज की और अंग्रेजी सीख गई। फिल्‍म में महिला के दृढसंकल्‍प को दिखाने की कोशिश की गई है।

10 . क्वीन

  फिल्‍म क्‍वीन छोटे से शहर के एक भारतीय लड़की की कहानी है जो अपने हनीमून पर अकेले जाने का निर्णय करती हैा वह एक रूढिवादी परिवार से ताल्‍लुक रखती हैा उसका भाई पहरेदार के रूप में उसकी सुरक्षा के लिए हर जगह उसके साथ रहता हैा फिल्म  रानी और उसकी हनीमून यात्रा के दौरान ही अपनी पहचान को दोबारा से खोजने पर केंद्रित हैा इस बाहरी यात्रा के साथ वह भीतरी यात्रा भी करती है और उसका वो पहलू सामने आता है जिससे उसका परिचय भी पहली बार होता है। एक घबराने और नर्वस रहने वाली लड़की से आत्मविश्वासी लड़की बनने की इस यात्रा के दर्शक साक्षी बनते हैं। इस तरह की फिल्म और वह भी महिला किरदार को लेकर बनाने का साहस फिल्ममेकर नहीं कर पाते हैं और इस मायने में विकास बहल निर्देशित फिल्म ‘क्वीन’ अनोखी है।

  1.  पिंक

फिल्म में समाज में व्याप्त स्त्री और पुरुष के लिए दोहरे मापदंड पर आधारित प्रश्न मुख्य रूप से उठाया गया है। यह फिल्म उन लोगों के मुंह पर भी तमाचा जड़ती है जो लड़कियों के जींस या स्कर्ट पहनने पर सवाल उठाते हैं। पिंक’ उन प्रश्नों को उठाती है जिनके आधार पर लड़कियों के चरित्र के बारे में बात की जाती है। लड़कियों के चरित्र घड़ी की सुइयों के आधार पर तय किए जाते हैं। कोई लड़की किसी से हंस बोल ली या किसी लड़के के साथ कमरे में चली गई या फिर उसने शराब पी ली तो लड़का यह मान लेता है कि लड़की ‘चालू’ है। उसे सेक्स के लिए आमंत्रित कर रही है फिल्म इस बात का पुरजोर तरीके से समर्थन करती है कि लड़कियों को कब, कहां, क्या और कैसे करना है इसके बजाय हमें अपनी सोच बदलना होगी।

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Susmita is a homemaker as well as a writer. She loves writing whatever comes in her mind either its about home affair or about social or political affairs. She believe sharing your opinion is a great power of human being which can make social changes and bring people together. She believe enjoying every sip of life.