ये हैं बिहार के इकलौते सिनेमेटाेग्राफर, बना चुके हैं 4500 म्यूजिक वीडियो और 3 हजार एपिसोड
छऊ नृत्य पर इनकी बनाई डॉक्यूमेंट्री आज भी झारखंड के स्थापना दिवस पर दिखाई जाती है।
फारबिसगंज(बिहार)-फारबिसगंज के मिडिल क्लास परिवार में जन्मे राजेश राज ने अपने टैलेंट के दम पर सैकड़ों युवाओं को ट्रेनिंग देकर उनके भविष्य को कामयाब बना दिया। हालात से डटकर ख्वाब में पर टांकने वाले फिल्म डायरेक्टर और डॉक्यूमेंट्री मेकर राजेश राज का वाइस्कोप, समाज का सच दिखाता है। राज ने हिम्मत से हौसलों की उड़ान भरी है। बहुत कुछ हासिल किया है उन्होंने और बहुत उम्मीदें इनकी अभी भी बाकी है। जाने-माने फिल्म डायरेक्टर प्रकाश झा के साथ भी काम किया और अब खुद के हौसले से कदम बढ़ा रहे हैं।
बिहार के इकलौते डीओपी हैं राज
20 सालों से वाइस्कोप में समाज का सच उतारने वाले राजेश का जन्म अररिया के फारबिसगंज में 1968 में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई कटिहार से हुई। बीएल हाईस्कूल मुरलीगंज, मधेपुरा से मैट्रिक, फारबिसगंज कॉलेज से इंटर (जीव विज्ञान) और गैजुएशन (इतिहास ऑनर्स )की डिग्री ली। बड़े होने के साथ वाईस्कोप अपनी ओर खींचने लगी।
1996 में मुंबई का रुख किया
1996 के अाखिर में मुंबई का रुख किया। जहां राज कपूर फिल्म्स के बैनर तले सीरियल ‘शादी का सीजन‘ के एपिसोड डायरेक्टर रहे। हालांकि, यह टेलीविजन पर नहीं आ सका। इसी बीच पारिवारिक कारणों से बिहार लौटना पड़ा। 2001 में बिहार में पहली बार सेटेलाइट चैनल ईटीवी बिहार आया। इन्होंने इस चैनल के पहले प्रोग्रामिंग हेड का चार्ज संभाला।
14 बच्चों को इन्होंने ईटीवी प्रोग्राम में बनाया था प्रतिभागी
1992 में सांस्कृतिक सूचना केंद्र के तहत NFDC के सहयोग से 7 दिवसीय फिल्म महोत्सव का फ्री आयोजन किया। जिसमें वैसी फिल्मों का प्रदर्शन किया, जिसे उस वक्त यहां के लाेगों के लिए देखना सुलभ नहीं था। इतना ही नहीं इन्होंने ईटीवी के प्रोग्रामिंग हेड रहते हुए 2001-2003 में फारबिसगंज के 14 बच्चों को ईटीवी में कंटस्टेंट बनाया।
इनकी डॉक्यूमेंट्री को दिखाया जाता है झारखंड के स्थापना दिवस में
राजेश ने सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं और स्वतंत्र रूप से संवेदनशील मुद्दों पर लगभग 100 डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाई है। छऊ नृत्य पर इनके डॉक्यूमेंट्री आज भी झारखंड के स्थापना दिवस पर दिखाई जाती है। वहीं ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर बनाई ‘लक्ष्य‘ और ‘स्माइल‘ समेत भ्रूण हत्या पर बेस्ड ‘कोपल‘ बेहद संवेदनशील और अंदर तक छूने वाली डॉक्यूमेंट्री रही।
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