फादर्स डे विशेष : पिता को समर्पित कुछ कविताओं का संकलन
पिता दुनिया का ऐसा व्यक्ति हैं जो जिंदगी भर अपने परिवार के लिए मेहनत करता हैं। और अपने परिवार पर अपना सबकुछ निछावर कर देता हैं। पिता अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ होते हैं, उनके बारे मे कहने ले लिए शब्द कम पड़ जाते हैं। वैसे तो पिता को कोई भी परिभाषित नहीं कर सकता क्यूंकि माता-पिता, गुरु कुछ ऐसे रिश्ते भगवान ने हमें दिए हैं जिनसे हम कितना भी ऋण-मुक्त होना चाहें, असंभव ही जान पड़ता है। कहते हैं कि मां दुनिया की अनोखी और अद्भुत देन हैं। वह अपने बच्चे को नौ महीने तक अपनी कोख में पाल-पोस कर उसे जन्म देने का नायाब काम करती है। अपना दूध पिलाकर उस नींव को सींचती और संवारती है। जैसा कि मां का स्थान दुनिया सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, वैसे ही पिता का स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। हिन्दी कविता जिस आवृत्ति से माँ का गुणगान करती दिखती है, उतनी भारी संख्या में पिता पर नहीं बिछती। संग्रहालय में पिता से संबंधित कुछ कविताएँ हीं मिलतीं हैं। फादर्स डे के अवसर पर ऐसी ही कुछ कविताओं का एक संकलन प्रस्तुत है आपके समक्ष…
जब हिंदी कवि सम्मेलनों पर पिता की कविताओं की जरुरत थी तब पंडित ओम व्यास जी ने एक ऐसी कविता दी जो जन्मों तक याद की जायेगी। पेश हैं उनकी महान कविता के कुछ अंश-
पिता, पिता रोटी है, कपडा है, मकान है,
पिता, पिता छोटे से परिंदे का बडा आसमान है,पिता, पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है,
पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है,पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं,
पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं,पिता से परिवार में प्रतिपल राग है,
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है,पिता, पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है,
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है
‘पिता’ शब्द के उच्चारण के साथ ही एक ऐसे शख्स की तस्वीर जेहन में उतर जाती है जो अपने बच्चों के साथ मेले में घूम रहा होता है, जिसका व्यक्तित्व थोडा कठोर सा है, जो मीलों दूर तक जाकर रोटी की जुगाड कर रहा होता है, जो अपने बच्चों को रात के आसमान में चंदा दिखा रहा होता है, कभी रौब से फटकार रहा होता है और कभी गलत काम करने पर मार भी रहा होता है। पिता नाम का शख्स जवानी के दिनों में बच्चों का दोस्त भी बन जाता है तो कभी उसके लिए रोड़ा भी। तो कुल मिलाकर पिता की एक अच्छी-खासी तस्वीर सामने निकल कर आती है। एक बाप अपने बच्चों को साईकिल ही नहीं दिलवाता उस साईकिल को चलाना भी सिखाता है, भले ही उसे महीने साईकिल के पीछे भागना पड़े।
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पुत्र जाने-अनजाने में पिता से बहुत सी बातें सीखता है। वो कुम्हार का बर्तन बन सकता है कुम्हार नहीं। नील कमल जी अपनी कविता में लिखते हैं-
भूख के दिनों में
खाली कनस्तर के
भीतर
थोड़े से बचे, चावल की
महक का नाम, पिता है
हिंदी कवि मंचों के बड़े नाम और मेरे प्रिय कवियों में से एक डॉ. कुमार विश्वास भी अपनी रचना में पिता को कुछ ऐसे व्यक्त करते हैं –
फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ
फिर पिता की याद आई है मुझे
नीम सी यादें ह्रदय में चुप समेटे
चारपाई डाल आँगन बीच लेटे
सोचते हैं हित सदा उनके घरों का
दूर है जो एक बेटी चार बेटे
एक रिश्ता और है जो कई मायनों में संस्कारों और मोह की चासनी में लिप्त हुआ है और वो रिश्ता है बाप-बेटी का | बेटियों के लिए पिता के क्या मायने हैं इस बात को मुन्नवर राना से अच्छा भला कोई कैसे कह सकता था ? उन्होंने एक ही शेर में सारी बात कह डाली –
रो रहे थे सब तो मैं भी फूटकर रोने लगा,
वैसे मुझको बेटियों की रुखसती अच्छी लगी
तो कहीं राना साहब का ये शेर एक पिता के दर्द को भी बयां करता है –
ऐसा लगता है कि जैसे ख़त्म मेला हो गया
उड़ गईं आंगन से चिड़ियां घर अकेला हो गया
उर्दू के महान शायर निदा फाज़ली ने अपनी एक रचना ‘वालिद की वफात पर’ में अपने वालिद को कुछ इस तरह याद किया-
तुम्हारी कब्र पर
मैं फातिहा पढने नहीं आया
मुझे मालूम था
तुम मर नहीं सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर जिसन उडाई थी
वो झूठा था
आज दौर बदल चुका है, पिता बच्चों को बेवजह फटकारता नहीं, कठोर बनकर पेश नहीं आता, बच्चे की पढाई में उसके साथ भागता है मानो बच्चों का नहीं उनका इम्तेहान हो। अपने बच्चों को सफल बनाने में कोई चूक नहीं आने देता।
बच्चों को भी चाहिए पिता की महत्ता को समझें, किसी फादर्स डे की अनिवार्यता को नहीं। आज हमारा समाज शिक्षित तो है थोडा संस्कारी और हो जाए तो बस आनंद आ जाए।